जैन परम्परा में राष्ट्रधर्म !! Rashtradharma in Jain tradition !!

 जैन परम्परा में राष्ट्रधर्म

  • जैन परम्परा में जैन श्रमण तीन संध्याओं में आत्मध्यान के समय ” सत्त्वेषु मैत्री …. श्लोक के माध्यम से है भगवन्! मेरी आत्मा सदा सभी प्राणि भाव को धारण करे।” राष्ट्रभावना भाते हैं।
  • दिगम्बराचार्य पूज्यपाद स्वामी ने शांतिभक्ति  में  क्षेमं  सर्व प्रजानां … श्लोक में स्पष्टतया राष्ट्र की संवृद्धि एवं सुख शांति की भावना भायी है।
  • मेरी भावना में पंडित श्री जुगलकिशोर मुख्यार ने राष्ट धर्म का जो अमर सन्देश दिया हैं  वह तारीफ -ए – काबिल है, देखिए- “बनकर सब युगवीर ह्रदय से देशोन्नति रत रहा करे” अर्थात् हे देश के लोगों! तुम अपने हृदय को महावीर बनाओ और देश की  उन्नति में हरदम प्रयासरत रहो। देशोन्नति  में आतंकवाद बाधक है। आतंकवाद के रहते देशोन्नति नहीं  हो सकती |  देश की उन्नति करना हमारा राष्ट्रधर्म है।
  • हम प्रतिदिन शान्तिधारा में भगवान् के सामने राष्ट्र की शुभ मंगल कामना करते हुए प्रार्थना करते हैं – “सर्वराष्ट्रमारीं छिन्धि छिन्धि, भिन्धि-भिन्धि सम्पूर्ण राष्ट्र में व्याप्त होने वाली महामारी नष्ट हो-नष्ट हो । सर्वदेशमारीं छिन्धि-छिन्धि, भिन्धि-भिन्धि सम्पूर्ण देश में व्याप्त होने वाली महामारी नष्ट हो – नष्ट हो ।” वर्तमान युग के प्रखर चिन्तक, दार्शनिक, महाकवि, श्रमण शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने राष्ट्रीय संदेश दिया है|
दूषण न भूषण बनो, बनो देश के भक्त ।
उम्र बढ़े बस देश की, देश रहे अविभक्त ॥ 
  • हे देश के लोगो ! तुम कृतघ्नी मत बनो, तुम कृतज्ञ बनो । अपने देश के उपकार को सदा याद रखो और अपने देश से प्यार करो और देश के वफादार नागरिक बनो, जिसमें तुम्हारे देश की तरक्की हो और तुम्हारा देश एक अखण्ड राष्ट्र बना रहे।
  • आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के आशीर्वाद से देश के विभिन्न स्थानों पर सार्वजनिक हित के लिए चिकित्सालय, गौशाला, विद्यालय, विकलांग केन्द्र, धर्मार्थ औषधालय, प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान का निर्माण किया गया है तथा प्राणिमात्र के कल्याण के लिए हथकरघा स्वरोजगार को प्रोत्साहन दिया, गुरुदेव का इतना अधिक राष्ट्रप्रेम है कि इण्डिया हटाओ-भारत लाओ का नारा दिया।
  • इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे जैनधर्म में राष्ट्रधर्म का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। मंत्रों में, शास्त्रों, पुराणों में शिलालेख और प्रशस्तिओं में राष्ट्र भावना का स्पष्ट उल्लेख है। आवश्यकता इस बात की है कि हमें अपनी पूजा-प्रार्थनाओं की शुभ मंगल कामनाओं को अपनी संवेदनाओं का विषय बनाना चाहिए और राष्ट्र भक्ति के साथ अपने जीवन में राष्ट्र धर्म का पालन करना चाहिए।
  • हमारा राष्ट्रधर्म: गरीबों का उद्धार करना, बेईमानी नहीं करना, किसी की बेइज्जती नहीं करना, अनुशासन का पालन करना, न्यायपूर्वक आजीविका करना, सद्भावना रखना और सदाचार का पालन करना यह नागरिकों का धर्म है, प्रत्येक देशवासी को इसका पालन करना चाहिए।

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