प्रश्न ३४० -कौन सी रानी ऐसी थी जिसे रोना ही मालूम नहीं था ?
उत्तर –हस्तिनापुर के राजा अशोक की रानी रोहिणी थी, जिसे ‘‘रोना किसे कहते हैं’’ यह ज्ञात ही नहीं था।
प्रश्न ३४१ -किस व्रत के प्रभाव से उसे ऐसा पुण्य प्राप्त हुआ था ?
उत्तर –पूर्व जन्म में उसने ‘‘रोहिणी व्रत’’ किया था उसके प्रभाव से उसे जीवन में कभी रोना नहीं पड़ा।
उत्तर –पूर्व जन्म में उसने ‘‘रोहिणी व्रत’’ किया था उसके प्रभाव से उसे जीवन में कभी रोना नहीं पड़ा।
प्रश्न ३४२ -रोहिणी व्रत कैसे और कब किया जाता है ?
उत्तर -प्रतिमाह में २७वें दिन एक बार आकाश में ‘‘रोहिणी’’ नामक नक्षत्र उदित होता है उसी दिन भगवान वासुपूज्य की अभिषेक-पूजन करके उपवास या एकाशन से यह व्रत सम्पन्न किया जाता है। पंचांग से इसकी तिथि की जानकारी होती है।
उत्तर -प्रतिमाह में २७वें दिन एक बार आकाश में ‘‘रोहिणी’’ नामक नक्षत्र उदित होता है उसी दिन भगवान वासुपूज्य की अभिषेक-पूजन करके उपवास या एकाशन से यह व्रत सम्पन्न किया जाता है। पंचांग से इसकी तिथि की जानकारी होती है।
प्रश्न ३४३ -कितने वर्षों तक यह व्रत करना होता है ?
उत्तर –३ वर्ष, ५ वर्ष, ७ वर्ष या ९ वर्षों तक इस व्रत को करके उध्यापन किया जाता है।
उत्तर –३ वर्ष, ५ वर्ष, ७ वर्ष या ९ वर्षों तक इस व्रत को करके उध्यापन किया जाता है।
प्रश्न ३४४ -सती राजुल ने कहाँ तपस्या की थी ?
उत्तर –गिरनार पर्वत के शिरसा वन में।
उत्तर –गिरनार पर्वत के शिरसा वन में।
प्रश्न ३४५ -आर्यिकाओं के कौन सा गुणस्थान होता है ?
उत्तर –पाँचवाँ देशविरत गुणस्थान आर्यिकाओं के होता है।
उत्तर –पाँचवाँ देशविरत गुणस्थान आर्यिकाओं के होता है।
प्रश्न ३४६ -क्या वे क्षुल्लक-ऐलक के ध्वारा भी पूज्य होती हैं ?
उत्तर –हाँ! क्योंकि वे उपचार से महाव्रती होती हैं।
उत्तर –हाँ! क्योंकि वे उपचार से महाव्रती होती हैं।
प्रश्न ३४७ -क्या आर्यिकाएँ ११ अंग और १४ पूर्व तक ग्रंथों का अध्ययन कर सकती हैं ?
उत्तर –ग्यारह अंग तक अध्ययन कर सकती हैं पूर्वों का नहीं। जैसा कि सुलोचना आर्यिका का उदाहरण आता है-एकादशांग भृज्जाता सार्यिकापि सुलोचना।’’
उत्तर –ग्यारह अंग तक अध्ययन कर सकती हैं पूर्वों का नहीं। जैसा कि सुलोचना आर्यिका का उदाहरण आता है-एकादशांग भृज्जाता सार्यिकापि सुलोचना।’’
प्रश्न ३४८ -सती सीता के पुत्रों को किसने विध्याध्ययन करवाया था ?
उत्तर –‘‘सिद्धार्थ’’ नाम के क्षुल्लक जी ने लव-कुश नामक उनके दोनों पुत्रों को समस्त विध्याओं में पारंगत किया था।
उत्तर –‘‘सिद्धार्थ’’ नाम के क्षुल्लक जी ने लव-कुश नामक उनके दोनों पुत्रों को समस्त विध्याओं में पारंगत किया था।
प्रश्न ३४९ -सीता सती का जीवन आदर्श क्यों बना ?
उत्तर -क्योंकि उसने पातिव्रत्य धर्म का पालन किया था।
उत्तर -क्योंकि उसने पातिव्रत्य धर्म का पालन किया था।
प्रश्न ३५० -कैकेयी ने पति से कितने वरदान माँगे थे ?
उत्तर –जैन रामायण के अनुसार वैकेयी ने पति दशरथ से केवल एक ही वरदान मांगा था कि ‘‘मेरे पुत्र भरत को राजगद्दी प्रदान करें।’’
उत्तर –जैन रामायण के अनुसार वैकेयी ने पति दशरथ से केवल एक ही वरदान मांगा था कि ‘‘मेरे पुत्र भरत को राजगद्दी प्रदान करें।’’
प्रश्न ३५१ -क्या कैकेयी की राम के प्रति व्देष भावना नहीं थी ?
उत्तर –कदापि नहीं, केवल पुत्र मोह के कारण उसने भरत के लिए राज्य मांगा था, क्योंकि भरत घर छोड़कर दीक्षा लेना चाहते थे।
उत्तर –कदापि नहीं, केवल पुत्र मोह के कारण उसने भरत के लिए राज्य मांगा था, क्योंकि भरत घर छोड़कर दीक्षा लेना चाहते थे।
प्रश्न ३५२ -तब राम को वनवास क्यों जाना पड़ा ?
उत्तर –अयोध्या में राम के उपस्थित रहते हुए प्रजा भरत का शासन स्वीकार नहीं करती, इसलिए राम स्वेच्छा से वन प्रस्थान कर गये थे।
उत्तर –अयोध्या में राम के उपस्थित रहते हुए प्रजा भरत का शासन स्वीकार नहीं करती, इसलिए राम स्वेच्छा से वन प्रस्थान कर गये थे।
प्रश्न ३५३ -राम के साथ लक्ष्मण का नाम क्यों स्मरण किया जाता है ?
उत्तर –भ्रातृप्रेम के कारण।
उत्तर –भ्रातृप्रेम के कारण।
प्रश्न ३५४ -लक्ष्मण की पट्टरानी का क्या नाम था ?
उत्तर –विशल्या।
उत्तर –विशल्या।
प्रश्न ३५५ -विशल्या किसकी कन्या थी ?
उत्तर –राजा द्रोणमेघ की कन्या थी।
उत्तर –राजा द्रोणमेघ की कन्या थी।
प्रश्न ३५६ -विशल्या में क्या विशेषता थी ?
उत्तर –उसके स्नान किये हुए जल का स्पर्श करने वाले रोगी निरोग हो जाते थे।
उत्तर –उसके स्नान किये हुए जल का स्पर्श करने वाले रोगी निरोग हो जाते थे।
प्रश्न ३५७ -उसे ऐसी शक्ति कैसे प्राप्त हुई थी ?
उत्तर –उसने पूर्व जन्म में अनंगशरा कन्या की पर्याय में हजारों वर्षों तक जंगल में तपस्या की थी तथा अन्त में संन्यासपूर्वक मरण किया था, इसलिए उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई कि युद्धक्षेत्र में विशल्या के आते ही लक्ष्मण के शरीर से अमोघ शक्ति निकलकर भाग गई थी।
उत्तर –उसने पूर्व जन्म में अनंगशरा कन्या की पर्याय में हजारों वर्षों तक जंगल में तपस्या की थी तथा अन्त में संन्यासपूर्वक मरण किया था, इसलिए उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई कि युद्धक्षेत्र में विशल्या के आते ही लक्ष्मण के शरीर से अमोघ शक्ति निकलकर भाग गई थी।
प्रश्न ३५८ -औषधिदान में किसका नाम प्रसिद्ध हुआ है ?
उत्तर –वृषभसेना का।
उत्तर –वृषभसेना का।
प्रश्न ३५९ -सम्यग्दर्शन के अमूढ़दृष्टि अंग में कौन सी रानी का नाम प्रसिद्ध हुआ है ?
उत्तर –रेवती रानी का।
उत्तर –रेवती रानी का।
प्रश्न ३६० -कोटिभट्ट श्रीपाल की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर –सती मैना सुन्दरी।
उत्तर –सती मैना सुन्दरी।
प्रश्न ३६१ -क्या स्त्रियों को केवलज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ?
उत्तर –नहीं।
उत्तर –नहीं।
प्रश्न ३६२ -रावण की माता का क्या नाम था ?
उत्तर –केकसी।
उत्तर –केकसी।
प्रश्न ३६३ -सीता का जीव मरकर कहाँ गया ?
उत्तर –बारहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुआ जो आज भी वहाँ स्वर्ग सुखों को भोग रहा है।
उत्तर –बारहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुआ जो आज भी वहाँ स्वर्ग सुखों को भोग रहा है।
प्रश्न ३६४ -पांडवों की माता का क्या नाम था ?
उत्तर –युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माँ का नाम कुन्ती था और नकुल-सहदेव की माता का नाम माद्री था।
उत्तर –युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माँ का नाम कुन्ती था और नकुल-सहदेव की माता का नाम माद्री था।
प्रश्न ३६५ -तीर्थंकर किसे कहते हैं ?
उत्तर –धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करने वाले, पंचकल्याणक प्राप्त करने वाले महापुरुष तीर्थंकर कहलाते हैं।
उत्तर –धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करने वाले, पंचकल्याणक प्राप्त करने वाले महापुरुष तीर्थंकर कहलाते हैं।
प्रश्न ३६६ -तीर्थंकर कितने होते हैं ?
उत्तर -चौबीस तीर्थंकर होते हैं।
उत्तर -चौबीस तीर्थंकर होते हैं।
प्रश्न ३६७ -चक्रवर्ती कितने होते हैं ?
उत्तर -बारह चक्रवर्ती होते हैं।
उत्तर -बारह चक्रवर्ती होते हैं।
प्रश्न ३६८ -बलभद्र कितने होते हैं ?
उत्तर –नौ।
उत्तर –नौ।
प्रश्न ३६९ -नारायण कितने हुए हैं ?
उत्तर –नौ।
उत्तर –नौ।
प्रश्न ३७० -प्रति नारायण कितने हुए हैं ?
उत्तर –नौ।
उत्तर –नौ।
प्रश्न ३७१ -तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण ये त्रेसठ शलाका पुरुष कब पैदा होते हैं ?
उत्तर –चतुर्थकाल (सतयुग) में।
उत्तर –चतुर्थकाल (सतयुग) में।
प्रश्न ३७२ -धर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो प्राणियों को उत्तम सुख में पहुँचाता है, उसे धर्म कहते हैं।
उत्तर -जो प्राणियों को उत्तम सुख में पहुँचाता है, उसे धर्म कहते हैं।
प्रश्न ३७३ -मनुष्य कितनी उम्र में साधुओं को आहार देने का अधिकारी होता है ?
उत्तर –८ वर्ष की उम्र के बाद बालक-बालिकाएँ आहारदान, पूजन और दीक्षा लेने के अधिकारी हो जाते हैं।
उत्तर –८ वर्ष की उम्र के बाद बालक-बालिकाएँ आहारदान, पूजन और दीक्षा लेने के अधिकारी हो जाते हैं।
प्रश्न ३७४ -अकलंक-निकलंक ने विवाह क्यों नहीं किया था ?
उत्तर –अनेकान्तमयी जैनधर्म की प्रभावना करने के लिए उन्होंने विवाह नहीं किया था।
उत्तर –अनेकान्तमयी जैनधर्म की प्रभावना करने के लिए उन्होंने विवाह नहीं किया था।
प्रश्न ३७५ -निकलंक ने अपने प्राणों का बलिदान क्यों किया था ?
उत्तर –जिनधर्म की रक्षा के लिए।
उत्तर –जिनधर्म की रक्षा के लिए।
प्रश्न ३७६ -तारादेवी से ६ माह तक शास्त्रार्थ किसने किया था ?
उत्तर –जैन मुनि अकलंक देव ने।
उत्तर –जैन मुनि अकलंक देव ने।
प्रश्न ३७७ -अंडा खाना शाकाहार है या माँसाहार ?
उत्तर –मांसाहार है। क्योंकि अंडा मुर्गी के पेट से ही पैदा होता है किसी वृक्ष से नहीं।
उत्तर –मांसाहार है। क्योंकि अंडा मुर्गी के पेट से ही पैदा होता है किसी वृक्ष से नहीं।
प्रश्न ३७८ -भारत सरकार अंडे के व्यापार को कृषि-खेती के नाम से प्रचारित करती है, सो देश के साथ धोखा है या नहीं ?
उत्तर –देशवासियों के साथ यह महान विश्वासघात है। हमारी भारतीय संस्कृति अहिंसा प्रधान संस्कृति है अत: अंडे के इस दुष्प्रचार हेतु समस्त अहिंसाप्रेमियों को भारत सरकार के पास विरोध- पत्र भेजना चाहिए।
उत्तर –देशवासियों के साथ यह महान विश्वासघात है। हमारी भारतीय संस्कृति अहिंसा प्रधान संस्कृति है अत: अंडे के इस दुष्प्रचार हेतु समस्त अहिंसाप्रेमियों को भारत सरकार के पास विरोध- पत्र भेजना चाहिए।
प्रश्न ३७९ -शाकाहार और मांसाहार की क्या परिभाषा है ?
उत्तर –पेड़ों से उत्पन्न हुए फल, अन्न, मेवा, सब्जी, शाकाहार कहलाते हैं। शाकाहारी वस्तुओं में खून, पीव, हड्डी, माँस नहीं होता है तथा जानवरों को मारकर उत्पन्न हुई वस्तुएँ माँसाहार कहलाती हैं। जैसे-अंडा, माँस आदि।
उत्तर –पेड़ों से उत्पन्न हुए फल, अन्न, मेवा, सब्जी, शाकाहार कहलाते हैं। शाकाहारी वस्तुओं में खून, पीव, हड्डी, माँस नहीं होता है तथा जानवरों को मारकर उत्पन्न हुई वस्तुएँ माँसाहार कहलाती हैं। जैसे-अंडा, माँस आदि।
प्रश्न ३८० -शराब में क्या दोष है ?
उत्तर –वस्तुओं को सड़ाकर शराब बनाई जाती है अत: उसमें असंख्य जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। मादकता होने के कारण मनुष्य उसे पीकर मदोन्मत्त हो जाता है। पैसे और स्वास्थ्य की बर्बादी होती है अत: शराब का दूर से ही त्याग कर देना चाहिए।
उत्तर –वस्तुओं को सड़ाकर शराब बनाई जाती है अत: उसमें असंख्य जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। मादकता होने के कारण मनुष्य उसे पीकर मदोन्मत्त हो जाता है। पैसे और स्वास्थ्य की बर्बादी होती है अत: शराब का दूर से ही त्याग कर देना चाहिए।
प्रश्न ३८१ -ऑप्रेशन के साथ खून चढ़वाने से क्या माँसाहार का पाप लगता है ?
उत्तर –माँसाहार का पाप तो नहीं, किन्तु शाकाहार में दोष अवश्य लगता है अत: लाचारी में यदि खून चढ़वाना पड़े तो उसके बाद गुरु से प्रायश्चित्त अवश्य लेना चाहिए।
उत्तर –माँसाहार का पाप तो नहीं, किन्तु शाकाहार में दोष अवश्य लगता है अत: लाचारी में यदि खून चढ़वाना पड़े तो उसके बाद गुरु से प्रायश्चित्त अवश्य लेना चाहिए।
प्रश्न ३८२ -अपने खून या गुर्दे का दान देना पुण्य है या पाप ?
उत्तर –जैनशासन में खून-मांस का दान देना नहीं बताया है क्योंकि ये पाप के कारण हैं किन्तु यदि किसी की प्राणरक्षा हेतु अपना खून या गुर्दा दिया जाता है, तो परोपकार या करुणादान का पुण्य तो मिलता ही है।
उत्तर –जैनशासन में खून-मांस का दान देना नहीं बताया है क्योंकि ये पाप के कारण हैं किन्तु यदि किसी की प्राणरक्षा हेतु अपना खून या गुर्दा दिया जाता है, तो परोपकार या करुणादान का पुण्य तो मिलता ही है।
प्रश्न ३८३ -नेत्र शिविर लगाना किस दान में आता है ?
उत्तर –नेत्र शिविर में आये हुए शिविरार्थियों को शराब, अंडे, मांस आदि का त्याग अवश्य कराकर शिविर में भर्ती करना चाहिए, तब करुणादान तथा औषधिदान का पुण्य प्राप्त होता है, अन्यथा पाप का बंध होता है, क्योंकि यदि नेत्र प्राप्त करके व्यक्ति पुन: मांसाहारी या व्यसनी बन जाता है तो नेत्र शिविर में लगाया गया द्रव्य निरर्थक हो जाता है।
उत्तर –नेत्र शिविर में आये हुए शिविरार्थियों को शराब, अंडे, मांस आदि का त्याग अवश्य कराकर शिविर में भर्ती करना चाहिए, तब करुणादान तथा औषधिदान का पुण्य प्राप्त होता है, अन्यथा पाप का बंध होता है, क्योंकि यदि नेत्र प्राप्त करके व्यक्ति पुन: मांसाहारी या व्यसनी बन जाता है तो नेत्र शिविर में लगाया गया द्रव्य निरर्थक हो जाता है।
प्रश्न ३८४ -बालकों को प्रारंभिक ज्ञान के लिए कौन सी पुस्तके पढ़नी चाहिए ?
उत्तर -बालविकास नामक सचित्र चार भाग हैं उन्हें जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर से मंगवाकर अवश्य अध्ययन करना चाहिए। इससे बालक-बालिकाओं में प्रारंभ से ज्ञान की नींव मजबूत होती है।
उत्तर -बालविकास नामक सचित्र चार भाग हैं उन्हें जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर से मंगवाकर अवश्य अध्ययन करना चाहिए। इससे बालक-बालिकाओं में प्रारंभ से ज्ञान की नींव मजबूत होती है।
प्रश्न ३८५ -ज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर –पाँच भेद हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान।
उत्तर –पाँच भेद हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान।
प्रश्न ३८६ -पद्मपुराण के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर –आचार्य श्री रविषेण स्वामी।
उत्तर –आचार्य श्री रविषेण स्वामी।
प्रश्न ३८७ -पूजन क्यों की जाती है ?
उत्तर –पूज्य बनने के लिए।
प्रश्न ३८८ -विध्याथीॅ का प्रमुख कर्तव्य क्या है ?
उत्तर –विध्याध्ययन करना और गुरु आज्ञा का पालन करना विद्यार्थी का प्रमुख कत्र्तव्य है।
उत्तर –विध्याध्ययन करना और गुरु आज्ञा का पालन करना विद्यार्थी का प्रमुख कत्र्तव्य है।
प्रश्न ३८९ -गुरु भक्ति में कौन प्रसिद्ध हुए हैं ?
उत्तर –सम्राट चन्द्रगुप्त गुरु भक्ति में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए हैं।
उत्तर –सम्राट चन्द्रगुप्त गुरु भक्ति में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए हैं।
प्रश्न ३९० -चन्द्रगुप्त के गुरु का क्या नाम था ?
उत्तर –भद्रबाहु श्रुतकेवली।
उत्तर –भद्रबाहु श्रुतकेवली।
प्रश्न ३९१ -क्या चन्द्रगुप्त ने भी मुनिदीक्षा धारण की थी ?
उत्तर –हाँ, चन्द्रगुप्त ने भद्रबाहु श्रुतकेवली से मुनि दीक्षा धारण की थी।
उत्तर –हाँ, चन्द्रगुप्त ने भद्रबाहु श्रुतकेवली से मुनि दीक्षा धारण की थी।
प्रश्न ३९२ -चन्द्रगुप्त ने किस प्रकार से गुरु भक्ति की थी ?
उत्तर –अपने गुरु की उन्होंने सच्चे हृदय से भक्ति की थी, जिसके प्रभाव से जंगल में भी देवताओं ने नगर बसाकर उन्हें १२ वर्षों तक आहार दिया था।
उत्तर –अपने गुरु की उन्होंने सच्चे हृदय से भक्ति की थी, जिसके प्रभाव से जंगल में भी देवताओं ने नगर बसाकर उन्हें १२ वर्षों तक आहार दिया था।
प्रश्न ३९३ -उन्होंने देवताओं से आहार कैसे ले लिया, जब आगम में निषिद्ध है ?
उत्तर –चन्द्रगुप्त ने जानबूझकर देवताओं से आहार नहीं लिया था, क्योंकि वे मनुष्य का रूप धारण करके नवधाभक्ति से विधिपूर्वक उन्हें आहार देते थे। १२ वर्षों के बाद जब उन्हें ज्ञात हुआ, तब प्रायश्चित्त लिया पुन: वे उस स्थान से चले गये।
उत्तर –चन्द्रगुप्त ने जानबूझकर देवताओं से आहार नहीं लिया था, क्योंकि वे मनुष्य का रूप धारण करके नवधाभक्ति से विधिपूर्वक उन्हें आहार देते थे। १२ वर्षों के बाद जब उन्हें ज्ञात हुआ, तब प्रायश्चित्त लिया पुन: वे उस स्थान से चले गये।
प्रश्न ३९४ -सोते समय या मूच्र्छित अवस्था में मनुष्य जीव है या अजीव ?
उत्तर –जीव है, क्योंकि उसके श्वांस प्रक्रिया जारी रहती है।
उत्तर –जीव है, क्योंकि उसके श्वांस प्रक्रिया जारी रहती है।
प्रश्न ३९५ -संसार में सबसे तेज गति किसकी होती है ?
उत्तर –मन की गति सबसे तेज होती है जिसकी कोई सीमा नहीं है।
उत्तर –मन की गति सबसे तेज होती है जिसकी कोई सीमा नहीं है।
प्रश्न ३९६ -जैनधर्म सम्प्रदाय है या मात्र धर्म है ?
उत्तर –जैनधर्म केवल धर्म है न कि सम्प्रदाय।
उत्तर –जैनधर्म केवल धर्म है न कि सम्प्रदाय।
प्रश्न ३९७ -जैनधर्म को किसने चलाया है ?
उत्तर –जैनधर्म अनादिनिधन धर्म है। इसे न किसी ने चलाया है और न कोई इसे नष्ट कर सकता है।
उत्तर –जैनधर्म अनादिनिधन धर्म है। इसे न किसी ने चलाया है और न कोई इसे नष्ट कर सकता है।
प्रश्न ३९८ -जैन किसे कहते हैं ?
उत्तर –कर्म शत्रुओं को जीतने वाले महापुरुष जिन कहलाते हैं उन जिन के उपासक भक्त जैन कहलाते हैं। इस व्याख्या के अनुसार प्रत्येक प्राणी जैनधर्म को धारण करने का अधिकारी हो सकता है।
उत्तर –कर्म शत्रुओं को जीतने वाले महापुरुष जिन कहलाते हैं उन जिन के उपासक भक्त जैन कहलाते हैं। इस व्याख्या के अनुसार प्रत्येक प्राणी जैनधर्म को धारण करने का अधिकारी हो सकता है।
प्रश्न ३९९ -बारह भावनाओं के नाम बताओ ?
उत्तर –१. अनित्य २. अशरण ३. संसार ४. एकत्व ५. अन्यत्व ६. अशुचि ७. आश्रव ८. संवर ९. निर्जरा १०. लोक ११. बोधिदुर्लभ १२. धर्म।
उत्तर –१. अनित्य २. अशरण ३. संसार ४. एकत्व ५. अन्यत्व ६. अशुचि ७. आश्रव ८. संवर ९. निर्जरा १०. लोक ११. बोधिदुर्लभ १२. धर्म।
प्रश्न ४०० -अनित्य भावना का क्या लक्षण है ?
उत्तर –संसार के समस्त पदार्थ इन्द्रधनुष, बिजली अथवा जल के बबूले के समान शीघ्र नष्ट होने वाले हैं, ऐसा विचार करना अनित्य भावना है।
उत्तर –संसार के समस्त पदार्थ इन्द्रधनुष, बिजली अथवा जल के बबूले के समान शीघ्र नष्ट होने वाले हैं, ऐसा विचार करना अनित्य भावना है।
प्रश्न ४०१ -संसार भावना का स्वरूप बताओ ?
उत्तर –इन चतुर्गतिरूप संसार में भ्रमण करता हुआ जीव पिता से पुत्र, पुत्र से पिता, स्वामी से दास, दास से स्वामी हो जाता है और तो क्या, स्वयं अपना भी पुत्र हो जाता है, इत्यादि संसार के दु:खमय स्वरूप का विचार करना, संसार भावना है।
उत्तर –इन चतुर्गतिरूप संसार में भ्रमण करता हुआ जीव पिता से पुत्र, पुत्र से पिता, स्वामी से दास, दास से स्वामी हो जाता है और तो क्या, स्वयं अपना भी पुत्र हो जाता है, इत्यादि संसार के दु:खमय स्वरूप का विचार करना, संसार भावना है।
प्रश्न ४०२ -संसार कितने प्रकार का है ?
उत्तर –पाँच प्रकार का है-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव।
उत्तर –पाँच प्रकार का है-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव।
प्रश्न ४०३ -श्रावकाचार आज कितने छप चुके हैं ?
उत्तर –३६ श्रावकाचार छप चुके हैं।
उत्तर –३६ श्रावकाचार छप चुके हैं।
प्रश्न ४०४ -तीन हवन कुण्डों के नाम बताओ ?
उत्तर -१. तीर्थंकर कुण्ड २. गणधर कुण्ड ३. केवली कुण्ड।
उत्तर -१. तीर्थंकर कुण्ड २. गणधर कुण्ड ३. केवली कुण्ड।
प्रश्न ४०५ -त्रिकोण कुण्ड में किनके शरीर का संस्कार इन्द्र करते हैं ?
उत्तर –गणधर के शरीर का संस्कार करते हैं।
उत्तर –गणधर के शरीर का संस्कार करते हैं।
प्रश्न ४०६ -प्रतिक्रमण का क्या लक्षण है ?
उत्तर –प्रतिक्रमण का लक्षण पिछले दोषों की आलोचना करना है।
उत्तर –प्रतिक्रमण का लक्षण पिछले दोषों की आलोचना करना है।
प्रश्न ४०७ -प्रत्याख्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर –भविष्य के दोषों का त्याग करना प्रत्याख्यान है।
उत्तर –भविष्य के दोषों का त्याग करना प्रत्याख्यान है।
प्रश्न ४०८ -सप्तभंगी किसे कहते हैं ?
उत्तर –‘‘प्रश्नवशाद् एकस्मिन् वस्तुनि अविरोधेन विधिप्रतिषेध कल्पना सप्तभंगी।’’ अर्थात् प्रश्न के निमित्त से एक ही वस्तु में अविरोधरूप विधि और प्रतिषेध की कल्पना सप्तभंगी है।
उत्तर –‘‘प्रश्नवशाद् एकस्मिन् वस्तुनि अविरोधेन विधिप्रतिषेध कल्पना सप्तभंगी।’’ अर्थात् प्रश्न के निमित्त से एक ही वस्तु में अविरोधरूप विधि और प्रतिषेध की कल्पना सप्तभंगी है।
प्रश्न ४०९ -सप्तभंग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर –१. स्यादस्ति २. स्यान्नास्ति ३. स्यादस्तिनास्ति ४. स्यादवक्तव्य ५. स्यादस्ति अवक्तव्य ६. स्यान्नास्ति अवक्तव्य ७. स्यादस्ति-नास्ति अवक्तव्य।
उत्तर –१. स्यादस्ति २. स्यान्नास्ति ३. स्यादस्तिनास्ति ४. स्यादवक्तव्य ५. स्यादस्ति अवक्तव्य ६. स्यान्नास्ति अवक्तव्य ७. स्यादस्ति-नास्ति अवक्तव्य।
प्रश्न ४१० -स्याद्वाद जैन शासन की क्या विशेषता है ?
उत्तर –स्याद्वाद जैन शासन में अनेकांत मत को माना है। एकांत मत को स्वीकार नहीं किया है। प्रश्न ४११ -सप्तभंग कहाँ घटित होता है ?
उत्तर –प्रत्येक वस्तु में सप्तभंगी घटित हो सकती है।
उत्तर –स्याद्वाद जैन शासन में अनेकांत मत को माना है। एकांत मत को स्वीकार नहीं किया है। प्रश्न ४११ -सप्तभंग कहाँ घटित होता है ?
उत्तर –प्रत्येक वस्तु में सप्तभंगी घटित हो सकती है।
प्रश्न ४१२ -जैनधर्म के ऊपर सातों भंग घटित करें ?
उत्तर –१. जैनधर्म नित्य, शाश्वत है। २. जैनधर्म परमत की अपेक्षा-नास्ति रूप है। ३. जैनधर्म क्रमानुसार स्वसत्ता से अस्ति है और परसत्ता से नास्ति भी है। ४. जैनधर्म युगपत् एक साथ अस्ति-नास्ति रूप नहीं कहा जा सकता है। ५. जैनधर्म अपने रूप है और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है। ६. जैनधर्म पररूप से नास्ति है और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है। ७. जैनधर्म स्व की अपेक्षा अस्ति, पर की अपेक्षा नास्ति और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है।
उत्तर –१. जैनधर्म नित्य, शाश्वत है। २. जैनधर्म परमत की अपेक्षा-नास्ति रूप है। ३. जैनधर्म क्रमानुसार स्वसत्ता से अस्ति है और परसत्ता से नास्ति भी है। ४. जैनधर्म युगपत् एक साथ अस्ति-नास्ति रूप नहीं कहा जा सकता है। ५. जैनधर्म अपने रूप है और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है। ६. जैनधर्म पररूप से नास्ति है और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है। ७. जैनधर्म स्व की अपेक्षा अस्ति, पर की अपेक्षा नास्ति और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है।
प्रश्न ४१३ -ईर्यापथ शुद्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर –चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना ईर्यापथ शुद्धि है।
उत्तर –चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना ईर्यापथ शुद्धि है।
प्रश्न ४१४ -एक बार णमोकार मंत्र में कितने श्वासोच्छ्वास होना चाहिए ?
उत्तर –तीन स्वासोच्छ्वास।
उत्तर –तीन स्वासोच्छ्वास।
प्रश्न ४१५ -तीन अग्नि के क्या नाम हैं ?
उत्तर –१. गार्हपत्य २.आह्वनीय ३. दक्षिणाग्नि।
उत्तर –१. गार्हपत्य २.आह्वनीय ३. दक्षिणाग्नि।
प्रश्न ४१६ -रामचंद्र और बाहुबली कौन-कौन से केवली हैं ?
उत्तर –सामान्य केवली।
उत्तर –सामान्य केवली।
प्रश्न ४१७ -श्रावकों को दिन में कितनी बार पूजन करने का विधान है ?
उत्तर –तीन बार पूजन करने का विधान है।
उत्तर –तीन बार पूजन करने का विधान है।
प्रश्न ४१८ -सर्वतोभद्र पूजन कौन करते हैं ?
उत्तर -‘महामंडलीक राजा’ सर्वतोभद्र पूजन करते हैं।
उत्तर -‘महामंडलीक राजा’ सर्वतोभद्र पूजन करते हैं।
प्रश्न ४१९ -चौदह जीवसमास कौन-कौन से हैं ?
उत्तर –एकेन्द्रिय के दो भेद-बादर, सूक्ष्म। विकलेन्द्रिय के तीन भेद-दो इन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय। पंचेन्द्रिय के दो भेद-संज्ञी-असंज्ञी, इन सातों को पर्याप्त-अपर्याप्त से गुणा करने पर ७x२=·१४ जीवसमास होते हैं।
उत्तर –एकेन्द्रिय के दो भेद-बादर, सूक्ष्म। विकलेन्द्रिय के तीन भेद-दो इन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय। पंचेन्द्रिय के दो भेद-संज्ञी-असंज्ञी, इन सातों को पर्याप्त-अपर्याप्त से गुणा करने पर ७x२=·१४ जीवसमास होते हैं।
प्रश्न ४२० -५७ जीवसमास कैसे होते हैं ?
उत्तर –पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, नित्यनिगोद, इतर निगोद। इन छह के बादर और सूक्ष्म से १२ भेद हुए। प्रत्येक वनस्पति के २ भेद सप्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित। त्रस के ५ भेद-ये सब मिला देने पर १२+२+५=·१९ भेद हुए। इनमें पर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त इन ३ से गुणा करने पर ५७ जीवसमास हुए।
उत्तर –पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, नित्यनिगोद, इतर निगोद। इन छह के बादर और सूक्ष्म से १२ भेद हुए। प्रत्येक वनस्पति के २ भेद सप्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित। त्रस के ५ भेद-ये सब मिला देने पर १२+२+५=·१९ भेद हुए। इनमें पर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त इन ३ से गुणा करने पर ५७ जीवसमास हुए।
प्रश्न ४२१ -९८ जीवसमास कैसे होते हैं ?
उत्तर –उक्त ५७ भेद में से पंचेन्द्रिय संबंधी ६ निकालने से ५१ बचे। कर्मभूमि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के गर्भज-सम्मूच्र्छन ये २ भेद हैं। गर्भज के जलचर, थलचर, नभचर ये ३ भेद हैं इनमें संज्ञी-असंज्ञी से २ भेद, तो ३x२=६ हुए पुन: इनके पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त दो भेद करने से ६x२=१२ भेद हुए। पंचेन्द्रिय सम्मूच्र्छन के जलचर, थलचर, नभचर। इनके संज्ञी-असंज्ञी दो भेद, ३x२=६ हुए। इन ६ को पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त इन ३ से गुणा करने पर ६x३·=१८ हुए। इस प्रकार कर्मभूमिज पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के १२+१८·=३० भेद हुए । भोगभूमि तिर्यंच के स्थलचर, नभचर २ भेद, इनके पर्याप्त-निर्वृत्यपर्याप्त २ से गुणा करने पर ४ हुए। पुन: आर्यखंड में मनुष्यों के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त ये ३ भेद होते हैं। म्लेच्छ खंड में लब्ध्यपर्याप्त नहीं होते हैं। इसी प्रकार भोगभूमि, कुभोगभूमि के मनुष्यों में भी २ भेद होते हैं। देव और नारकियों के भी ये दो ही भेद होते हैं। इस तरह सब मिलकर ५१+३०+४+३+२+२+२+२+२=·९८ जीवसमास हुए।
उत्तर –उक्त ५७ भेद में से पंचेन्द्रिय संबंधी ६ निकालने से ५१ बचे। कर्मभूमि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के गर्भज-सम्मूच्र्छन ये २ भेद हैं। गर्भज के जलचर, थलचर, नभचर ये ३ भेद हैं इनमें संज्ञी-असंज्ञी से २ भेद, तो ३x२=६ हुए पुन: इनके पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त दो भेद करने से ६x२=१२ भेद हुए। पंचेन्द्रिय सम्मूच्र्छन के जलचर, थलचर, नभचर। इनके संज्ञी-असंज्ञी दो भेद, ३x२=६ हुए। इन ६ को पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त इन ३ से गुणा करने पर ६x३·=१८ हुए। इस प्रकार कर्मभूमिज पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के १२+१८·=३० भेद हुए । भोगभूमि तिर्यंच के स्थलचर, नभचर २ भेद, इनके पर्याप्त-निर्वृत्यपर्याप्त २ से गुणा करने पर ४ हुए। पुन: आर्यखंड में मनुष्यों के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त ये ३ भेद होते हैं। म्लेच्छ खंड में लब्ध्यपर्याप्त नहीं होते हैं। इसी प्रकार भोगभूमि, कुभोगभूमि के मनुष्यों में भी २ भेद होते हैं। देव और नारकियों के भी ये दो ही भेद होते हैं। इस तरह सब मिलकर ५१+३०+४+३+२+२+२+२+२=·९८ जीवसमास हुए।
प्रश्न ४२२ -प्राण कितने होते हैं ?
उत्तर –प्राण दस होते हैं-५ इन्द्रिय, ३ बल, आयु, श्वासोच्छ्वास। प्रश्न ४२३ -पंचेन्द्रिय संज्ञी अपर्याप्तक के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -८ प्राण हैं। प्रश्न ४२४ -अधर्म द्रव्य का क्या लक्षण है ?
उत्तर –जो जीव और पुद्गल को ठहराने में समर्थ हो, उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं।
उत्तर –प्राण दस होते हैं-५ इन्द्रिय, ३ बल, आयु, श्वासोच्छ्वास। प्रश्न ४२३ -पंचेन्द्रिय संज्ञी अपर्याप्तक के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -८ प्राण हैं। प्रश्न ४२४ -अधर्म द्रव्य का क्या लक्षण है ?
उत्तर –जो जीव और पुद्गल को ठहराने में समर्थ हो, उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं।
प्रश्न ४२५ -कालद्रव्य के कितने भेद हैं ?
उत्तर –२ भेद हैं-व्यवहार काल और निश्चयकाल।
उत्तर –२ भेद हैं-व्यवहार काल और निश्चयकाल।
प्रश्न ४२६ -ग्यारह प्रतिमा कौन धारण करते हैं ?
उत्तर -क्षुल्लक, क्षुल्लिका और ऐलक।
उत्तर -क्षुल्लक, क्षुल्लिका और ऐलक।
प्रश्न ४२७ -आचार्य के ३६ मूलगुण के नाम क्या हैं ?
उत्तर –१२ तप, १० धर्म, ५ आचार, ६ आवश्यक, ३ गुप्ति ये आचार्यों के ३६ मूलगुण हैं।
उत्तर –१२ तप, १० धर्म, ५ आचार, ६ आवश्यक, ३ गुप्ति ये आचार्यों के ३६ मूलगुण हैं।
प्रश्न ४२८ -सम्यग्दर्शन का क्या स्वरूप है ?
उत्तर –‘‘तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं’’ सात तत्त्व एवं नौ पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। सच्चे देव, सच्चे शास्त्र एवं सच्चे गुरु पर श्रद्धान करना भी सम्यग्दर्शन है।
उत्तर –‘‘तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं’’ सात तत्त्व एवं नौ पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। सच्चे देव, सच्चे शास्त्र एवं सच्चे गुरु पर श्रद्धान करना भी सम्यग्दर्शन है।
प्रश्न ४२९ -सम्यग्दर्शन किसको होता है ?
उत्तर –सम्यग्दर्शन भव्य, पर्याप्तक, पंचेन्द्रिय, संज्ञी जीव को ही होता है।
उत्तर –सम्यग्दर्शन भव्य, पर्याप्तक, पंचेन्द्रिय, संज्ञी जीव को ही होता है।
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