लेश्या कितनी होती हैं, उनका लक्षण क्या है, किस गति में कितनी लेश्या होती हैं। इसका वर्णन इस अध्याय में है।
1. लेश्या के मूल में कितने भेद हैं ?
लेश्या के दो भेद हैं-द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या।
2. द्रव्य लेश्या किसे कहते हैं ?
वर्णनामकर्म के उदय से उत्पन्न हुआ जो शरीर का वर्ण है, उसको द्रव्य लेश्या कहते हैं। (गोजी,494)
3. भाव लेश्या किसे कहते हैं ?
- "कषायोदयरंजिता योग प्रवृतिरितिकृत्वा औदयिकीत्युच्यते" | कषाय के उदय से अनुरंजित योग की प्रवृत्ति को भाव लेश्या कहते हैं। इसलिए वह औदयिकी कही जाती है। (रावा, 2/6/8)
- कषाय से अनुरंजित मन,वचन और काय की प्रवृत्ति को भाव लेश्या कहते हैं।
- "लिम्पतीति लेश्या" - जो लिम्पन करती है, उसको लेश्या कहते हैं। अर्थात् जो कर्मों से आत्मा को लिप्त करती है, उसको भाव लेश्या कहते हैं।
- संसारी आत्मा के भावों को (परिणामों को) भाव लेश्या कहते हैं। अन्य दर्शनकार इसे चित्तवृत्ति कहते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे आभामण्डल कहा है।
4. द्रव्य एवं भाव लेश्या के भेद कितने हैं ?
द्रव्य एवं भाव लेश्या के छ:भेद हैं - कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म एवं शुक्ल लेश्या। (गोजी,493)
5. कृष्णादि भाव लेश्याओं के लक्षण बताइए ?
- कृष्ण लेश्या - तीव्र क्रोध करने वाला हो, शत्रुता को न छोड़ने वाला हो, लड़ना जिसका स्वभाव हो, धर्म और दया से रहित हो, दुष्ट हो, दोगला हो, विषयों में लम्पट हो आदि यह सब कृष्ण लेश्या वाले के लक्षण हैं। (ध.पु., 1/390)
- नील लेश्या - बहुत निद्रालु हो, परवंचना में दक्ष हो, अतिलोभी हो, आहारादि संज्ञाओं में आसक्त हो आदि नील लेश्या वाले के लक्षण हैं।
- कापोत लेश्या - दूसरों के ऊपर रोष करता हो, निन्दा करता हो, दूसरों से ईष्र्या रखता हो, पर का पराभव करता हो, अपनी प्रशंसा करता हो, पर का विश्वास न करता हो, प्रशंसक को धन देता हो आदि कापोत लेश्या वाले के लक्षण हैं।
- पीत लेश्या - जो अपने कर्तव्य-अकर्तव्य, सेव्य-असेव्य को जानता हो, दया और दान में रत हो,मृदुभाषी हो, दृढ़ता रखने वाला हो आदि पीत लेश्या वाले के लक्षण हैं।
- पद्म लेश्या - जो त्यागी हो, भद्र हो, सच्चा हो, साधुजनों की पूजा में तत्पर हो, उत्तम कार्य करने वाला हो, बहुत अपराध या हानि पहुँचाने वाले को भी क्षमा कर दे आदि पद्म लेश्या वाले के लक्षण हैं।
- शुक्ल लेश्या - जो शत्रु के दोषों पर भी दृष्टि न देने वाला हो, जिसे पर से राग-द्वेष व स्नेह न हो,पाप कार्यों से उदासीन हो, श्रेयो कार्य में रुचि रखने वाला हो, जो पक्षपात न करता हो और न निदान करता हो, सबमें समान व्यवहार करता हो आदि शुक्ल लेश्या वाले के लक्षण हैं।
6. छ: लेश्याओं में से कितनी शुभ एवं कितनी अशुभ हैं ?
कृष्ण, नील, कापोत लेश्याएँ अशुभ एवं पीत, पद्म, शुक्ल लेश्याएँ शुभ हैं।
7. तीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र, मन्द, मन्दतर, मन्दतम लेश्याएँ कौन-कौन सी हैं ?
तीव्रतम-कृष्ण लेश्या, तीव्रतर-नील लेश्या, तीव्र-कापोत लेश्या, मन्द-पीत लेश्या,मन्दतर-पद्म लेश्या एवं मन्दतम-शुक्ल लेश्या है। (गो.जी., 500)
8. लेश्याओं के दृष्टान्त क्या हैं ?
छ: मनुष्य यात्रा को निकले, खाने को पास में कुछ भी नहीं था। सामने एक वृक्ष दिखा। उनके परिणाम कैसे-कैसे हुए। देखिए -
- कृष्ण लेश्या वाला कहता है कि जड़ से वृक्ष को उखाड़ो, तब फल खाएंगे।
- नील लेश्या वाला कहता है कि स्कन्ध (तने) को तोड़ो, तब फल खाएंगे।
- कापोत लेश्या वाला कहता है कि शाखा को तोड़ो तब फल खाएंगे।
- पीत लेश्या वाला कहता है कि उपशाखा को तोड़ो तब फल खाएंगे।
- पद्म लेश्या वाला कहता है कि फलों को तोड़कर खाएंगे।
- शुक्ल लेश्या वाला कहता है कि जो फल अपने आप जमीन पर गिर रहे हैं, उन्हें खाकर अपनी क्षुधा को शान्त करेंगे। (गो.जी., 507-508)

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