जैन धर्म में भक्ष्य - अभक्ष्य विचार !! Jain dharm me bhakshya - abhakshya vichar !!

 

प्रश्न- अभक्ष्य किसे कहते हैं?

उत्तर- जो पदार्थ भक्षण करने योग्य अर्थात् खाने योग्य नहीं उन्हें अभक्ष्य कहते हैं।

प्रश्न- इनके कितने भेद हैं?

उत्तर- इनके पाँच भेद हैं-
त्रसहिंसाकारक, बहुस्थावर हिंसाकारक, प्रभाकारक, अनिष्ट और अनुपसेव्य।

प्रश्न- त्रसहिंसाकारक अभक्ष्य किसे कहते हैं?

उत्तर- जिस पदार्थ के खाने से त्रस जीवों का घात होता है उसे त्रस हिंसाकारक अभक्ष्य कहते हैं जैसे-पंच उदम्बर फल, घुना अन्न, अमर्यादित वस्तु जिनमें बरसात में फफूंदी लग जाती है ऐसी कोई भी खाने की चीजें, चौबीस घण्टे के बाद का मुरब्बा, अचार, बड़ी, पापड़ और द्विदल आदि के खाने से त्रस जीवों का घात होता है।

प्रश्न- द्विदल किसे कहते हैं?

उत्तर- कच्चे दूध में या कच्चे दूध से बने हुए दही में दो दाल वाले मूंग, उड़द, चना आदि अन्न की बनी चीज मिलाने से द्विदल बनता है।

प्रश्न- बहुस्थावर हिंसाकारक अभक्ष्य क्या है?

उत्तर- जिस पदार्थ के खाने से अनंत स्थावर जीवों का घात होता है उसे स्थावर हिंसाकारक अभक्ष्य कहते हैं। जैसे-प्याज, लहसुन, आलू, मूली आदि कन्दमूल तथा तुच्छ फल खाने से अनंतों स्थावर जीवों का घात होता है।

प्रश्न- एक आलू में कितने निगोदिया जीव हैं?

उत्तर- एक निगोदिया जीव के शरीर में अनंतानंत सिद्धों से भी अनंतगुणे जीव रहते हैं और एक आलू में आदि में अनंत निगोदिया जीव हैं।

प्रश्न- शराब, गांजा, भांग, तम्बाकू आदि क्या अभक्ष्य हैं? इनका सेवन करने से क्या होता है?

उत्तर- शराब, गांजादि वस्तुएँ नशीली होने के साथ-साथ प्रमादकारक अभक्ष्य हैं इनका सेवन करने से प्रमाद या कामविकार बढ़ता है तथा ये स्वस्थ्य के लिए भी हानिकरक हैं। 

प्रश्न- अनिष्ट पदार्थ कौन से हैं?

उत्तर- जो पदार्थ भक्ष्य होने पर भी अपने लिए हितकर न हों वे अनिष्ट हैं जैसे बुखार वाले को हलुआ एवं जुकाम वाले को ठण्डी जीचें हितकर नहीं हैं।

प्रश्न- अनुपसेव्य क्या है?

उत्तर- जो पदार्थ सेवन करने योग्न न हों वह अनुपसेव्य हैं। लार, मूत्रादि पदार्थ अनुपसेव्य हैं।

प्रश्न- अभक्ष्य कितने हैं उनके नाम बताओ?

उत्तर- अभक्ष्य बाईस है उनके नाम क्रमश: इस प्रकार है- 
ओला, दही बड़ा (कच्चे दूध से जमाये दही का बड़ा) रात्रि भोजन, बहुबीजा, बैंगन, अचार (चौबीस घंटे बाद का) बड़, पीपल, ऊमर, कठूमर, पाकर, अजानफल (जिसको हम पहचानते नहीं ऐसे कोई फल-फूल पत्ते आदि), कंदमूल (मूली, गाजर आदि जमीन के भीतर उगने वाले) मिट्टी, विष (शंखिया, धतूरा आदि), आमिष-मांस, शहद, मक्खन, मदिरा, अतितुच्छ फल (जिसमें बीज नहीं पड़े हों ऐसे बिल्कुल कच्चे छोटे-छोटे फल) तुषार-बर्फ, और चलित रस (जिनका स्वाद बिगड़ जाये ऐसे फटे हुए दूध आदि)।

प्रश्न- मक्खन से घी बनता है तो वह अभक्ष्य कैसे हुआ?

उत्तर- दही बिलोने के बाद मक्खन को निकालकर ४८ मिनट के अंदर ही गर्म कर लेना चाहिए अन्यथा वह अभक्ष्य हो जाता है। कच्चे दूध से भी जो यंत्र से मक्खन निकाला जाता है उसमें भी कच्चे दूध की मर्यादा के अंदर मक्खन निकालकर जल्दी से गर्म करके ही बना लेना चाहिए।

प्रश्न- क्या बाजार की बनी हुई चीजें अभक्ष्य हैं?

उत्तर- बाजार की बनी हुई चीजें में मर्यादा का विवेक न रहने से, अनछने जल आदि से बनाई होने से वे सब अभक्ष्य हैं।

प्रश्न- क्या चमड़े में रखे घी, हींग, पानी आदि अभक्ष्य हैं?

उत्तर-हाँ, चमड़े में रखे घी, हींग, पानी आदि भी अभक्ष्य हैं।

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