जिसके माध्यम से संसारी जीव सुख-दु:ख का अनुभव करता है वह इन्द्रिय है, इसके भेद-प्रभेद, आकार, अवगाहना आदि का वर्णन इस अध्याय में है।
1. इन्द्रिय किसे कहते हैं ?
जिसके द्वारा संसारी जीवों की पहचान होती है, उसे इन्द्रिय कहते हैं।
2. इन्द्रियाँ कितनी होती हैं ?
इन्द्रियाँ 5 होती हैं -
- स्पर्शन इन्द्रिय - जिसके द्वारा आत्मा स्पर्श करता है, वह स्पर्शन इन्द्रिय है। स्पर्शन इन्द्रिय का विषय स्पर्श है, वह आठ प्रकार का होता है। शीत, उष्ण, रूखा, चिकना, कोमल, कठोर, हल्का और भारी।
- रसना इन्द्रिय - जिसके द्वारा आत्मा स्वाद लेता है, वह रसना इन्द्रिय है। रसना इन्द्रिय का विषय रस है, वह पाँच प्रकार का होता है। खट्टा, मीठा, कडुवा, कषायला और चरपरा।
- घ्राण इन्द्रिय - जिसके द्वारा आत्मा सूघता है, वह घ्राण इन्द्रिय है। घ्राण इन्द्रिय का विषय गन्ध है, वह दो प्रकार की होती है। सुगन्ध और दुर्गन्ध।
- चक्षुइन्द्रिय - जिसके द्वारा आत्मा देखता है, वह चक्षु इन्द्रिय है, चक्षु इन्द्रिय का विषय वर्ण है। वह पाँच प्रकार का होता है। काला, नीला, पीला, लाल और सफेद।
- श्रोत्र इन्द्रिय - जिसके द्वारा आत्मा सुनता है, वह श्रोत्र इन्द्रिय है। श्रोत्र इन्द्रिय का विषय शब्द है। वह सात प्रकार का होता है। षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत और निषाद। इन्हें सा, रे, गा, मा, प, ध, नि भी कहते हैं।
3. स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियों का आकार कैसा है ?
स्पर्शन इन्द्रिय अनेक आकार वाली है। रसना इन्द्रिय खुरप्पा के समान। घ्राण इन्द्रिय तिल के पुष्प के समान। चक्षु इन्द्रिय मसूर के समान और श्रोत्र इन्द्रिय जव की नली के समान।
4. एकेन्द्रिय आदि जीवों की अवगाहना एवं आयु कितनी है ?
इन्द्रिय | अवगाहना उत्कृष्ट | अवगाहना जघन्य | उत्कृष्ट' किसकी |
सभी स्वयं भूरमण समुंद्र एवं दीप में | आयु उत्कृष्ट' | आयु जघन्य |
एकेन्द्रिय | साधिक1000 योजन | एकेन्द्रिय | कमल | 10,000 वर्ष | अंतर्मुहूर्त | |
द्वीन्द्रिय | 12 योजन | घनाङ्गुल के | शंख | 12 वर्ष | अंतर्मुहूर्त | |
त्रीन्दिय | 3 कोस | असंख्यातवें भाग | कुम्भी | 49 दिन | अंतर्मुहूर्त | |
चतुरिन्द्रिय | 1 योजन | शेष सब घनाङ्गुल | भंवरा | 6 माह | अंतर्मुहूर्त | |
पञ्चेन्द्रिय | 1000 योजन | के संख्यातवें भाग | महामत्स्य | 1 पूर्व कोटि | अंतर्मुहूर्त |
नोट - पञ्चेन्द्रिय में महामत्स्य कि अपेक्षा एक पूर्व कोटि की आयु है | वेसे पञ्चेन्द्रिय की उकृष्ट आयु 33 सागर की होती है |
5. एकेन्द्रिय के पाँच स्थावरों में आयु, अवगाहना एवं आकार कैसा है ?
जीव | आकार | आयु (उ.) | आयु(ज.) | अवगाहना (उ.) | अवगाहना (ज.) |
खर पृथ्वीकायिक | मसूर के समान | 22000 वर्ष |
सर्वत्र अंतर्मुहूर्त | घनाडुल के |
सर्वत्र घनाङ्गुल के संख्यातवें भाग |
शुद्ध पृथ्वीकायिक | मसूर के समान | 12000 वर्ष | असंख्यातवें भाग | ||
जल | मोती के समान | 7,000 वर्ष | असंख्यातवें भाग | ||
अग्नि | सुई की नोक के समान | 3 दिन-रात | असंख्यातवें भाग | ||
वायु | पताका के समान | 3,000 वर्ष | असंख्यातवें भाग | ||
वनस्पति
| अनेक प्रकार
| 10,000 वर्ष
| 1000 योजन |
6. चार स्थावरों की जघन्य एवं उत्कृष्ट अवगाहना एक-सी कैसे ?
अर्जुल के असंख्यातवें भाग के असंख्यात भेद हैं क्योंकि असंख्यात संख्या भी असंख्यात प्रकार की होती है। सामान्य से अर्जुल के असंख्यातवें भाग हैं तथापि विशेष दृष्टि से उनमें परस्पर में हीनाधिकता है। (जीवकाण्ड, गाथा 184, हिन्दी - रतनचन्द मुख्तार)
7. पाँच इन्द्रियों के अन्तर्भद कितने-कितने होते हैं, नाम सहित बताइए ?
प्रत्येक दो-दो प्रकार की होती हैं, द्रव्येन्द्रिय एवं भावेन्द्रिय।
8. द्रव्येन्द्रिय किसे कहते हैं ?
निवृत्ति और उपकरण को द्रव्येन्द्रिय कहते हैं।
- निवृत्ति - प्रदेशों की रचना विशेष को निवृत्ति कहते हैं, यह दो प्रकार की होती है। बाह्य निवृत्ति और आभ्यन्तर निर्वृत्ति।
- बाह्य निवृत्ति - इन्द्रियों के आकार रूप पुद्गल की रचना विशेष को बाह्य निवृत्ति कहते हैं।
- आभ्यन्तर निवृत्ति - आत्मा के प्रदेशों की इन्द्रियाकार रचना विशेष को आभ्यन्तर निवृत्ति कहते हैं।
9. उपकरण किसे कहते हैं ?
जो निवृत्ति का उपकार (रक्षा) करता है, उसे उपकरण कहते हैं। उपकरण दो प्रकार के होते हैं
- बाह्य उपकरण - नेत्रेन्द्रिय के पलक की तरह, जो निवृत्ति का उपकार करे, उसे बाह्य उपकरण कहते हैं।
- आभ्यन्तर उपकरण - नेत्रेन्द्रिय में कृष्ण-शुक्ल मंडल की तरह सभी इन्द्रियों में जो निवृत्ति का उपकार करे, उसे आभ्यन्तर उपकरण कहते हैं।
10. भावेन्द्रिय किसे कहते हैं ?
लब्धि और उपयोग को भावेन्द्रिय कहते हैं। ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम को लब्धि कहते हैं एवं जिसके संसर्ग से आत्मा द्रव्येन्द्रिय की रचना के लिए उद्यत होता है, तन्निमित्तक आत्मा के परिणाम को उपयोग कहते हैं।
11. प्राण किसे कहते हैं एवं कितने होते हैं ?
जिस शक्ति के माध्यम से प्राणी जीता है, उसे प्राण कहते हैं। प्राण के मूल में 4 भेद हैं। इन्द्रिय प्राण, बल प्राण, श्वासोच्छास प्राण एवं आयु प्राण। इनके प्रभेद दस हो जाते हैं-1. स्पर्शन इन्द्रिय प्राण, 2. रसना इन्द्रिय प्राण, 3. घ्राण इन्द्रिय प्राण, 4. चक्षु इन्द्रिय प्राण, 5. श्रोत्र इन्द्रिय प्राण, 6. मनोबल प्राण 7. वचन बल प्राण 8.काय बल प्राण 9. श्वासोच्छास प्राण 10. आयु प्राण।
12. एकेन्द्रिय जीवों में कितने प्राण होते हैं ?
एकेन्द्रिय जीवों में 4 प्राण होते हैं- स्पर्शन इन्द्रिय, काय बल, श्वासोच्छास एवं आयु प्राण।
13. दो इन्द्रिय जीवों में कितने प्राण हैं ?
दो इन्द्रिय जीवों में 6 प्राण होते हैं - स्पर्शन, रसना इन्द्रिय, काय बल, वचन बल, श्वासोच्छास एवं आयु प्राण होते हैं।
14. तीन इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
तीन इन्द्रिय जीव के 7 प्राण होते हैं - स्पर्शन, रसना, घ्राण इन्द्रिय, काय बल, वचन बल, श्वासोच्छास एवं आयु प्राण होते हैं।
15. चार इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
चार इन्द्रिय जीव के 8 प्राण होते हैं - स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु इन्द्रिय, काय बल, वचन बल, श्वासोच्छास एवं आयु प्राण होते हैं।
16. असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय के 9 प्राण होते हैं - स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र इन्द्रिय, काय बल, वञ्चन बल, श्वासोच्छास एवं आयु प्राण होते हैं।
17. संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
संज्ञी पञ्चेन्द्रिय के 10 प्राण होते हैं।
18. अपर्याप्त अवस्था में कौन-कौन से प्राण नहीं होते हैं ?
अपर्याप्त अवस्था में 3 प्राण नहीं होते हैं। वचन बल, मन बल एवं श्वासोच्छास प्राण।
19. सयोग केवली के कितने प्राण होते हैं ?
सयोग केवली के भावेन्द्रिय एवं भाव मन के अभाव में मात्र 4 प्राण होते हैं। काय बल, वचन बल, आयु एवं श्वासोच्छास प्राण।
20. अयोग केवली के कितने प्राण होते हैं ?
अयोग केवली के मात्र 1 आयु प्राण रहता है।
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