अकृत्रिम चैत्यालय !! Akratrim Chetyalaya !!

 


जिन्हें किसी ने बनाया नहीं ऐसे अकृत्रिम चैत्यालय कहाँ-कहाँ पर हैं, कितने हैं उनकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई आदि कितनी है, इसका वर्णन इस अध्याय में है।

अनन्तानन्त अलोकाकाश के मध्य भाग में पुरुषाकार लोकाकाश है। इसके तीन भेद हैं - अधोलोक, मध्यलोक और ऊध्र्वलोक।

अधोलोक - अधोलोक में भवनवासी देव भी निवास करते हैं। वहाँ प्रत्येक भवन में जिन चैत्यालय हैं, कुल चैत्यालय सात करोड़ बहत्तर लाख हैं। प्रत्येक जिनमंदिर में 108, 108 प्रतिमाएँ हैं। इस प्रकार कुल 8,33,76,00,000 प्रतिमाएँ हैं। (त्रिसा, 208)

मध्यलोक - मध्यलोक में 458 चैत्यालय हैं।
मेरु में                               16 х 5 = 80

गजदंत में                          4 x 5 = 20

जम्बू-शाल्मली वृक्ष में         2 x 5 = 10
(जम्बू के उत्तर कुरु में जम्बू वृक्ष, धातकी के उत्तर कुरु में धातकी वृक्ष एवं पुष्कर के उत्तर कुरु में पुष्कर नाम के वृक्ष हैं।)
कुलाचल                           6 x 5 = 30

वक्षार गिरि                       16 x5 = 8O 

विजयार्ध                           34 x 5 = 170

इष्वाकार पर्वत-धातकीखण्ड में
2 एवं पुष्करार्ध में 2 हैं।       2 X 2 = 4

मानुषोत्तर पर्वत पर             4

नंदीश्वर द्वीप में                    52

कुण्डलवर पर्वत पर            4

रुचिकवर पर्वत पर             4
                                         458 (त्रि.सा., 561)

प्रत्येक जिन मंदिर में 108-108 प्रतिमाएँ हैं। 458 ×108= 49,464 कुल प्रतिमाएँ हैं। जिनको मेरा मन, वचन, काय से बारम्बार नमस्कार हो। 
ज्योतिषी - ज्योतिषी देवों के असंख्यात विमानों में असंख्यात अकृत्रिम चैत्यालय हैं। (त्रि.सा. 302) 
व्यन्तर - व्यन्तर देवों के असंख्यात निवास स्थानों में असंख्यात अकृत्रिम चैत्यालय हैं। (त्रि सा., 250) 
ऊध्र्वलोक - सोलह स्वर्गों में 84, 96, 700 अकृत्रिम चैत्यालय एवं कल्पातीत विमानों में 323 अकृत्रिम चैत्यालय हैं। इस प्रकार ऊध्र्वलोक में कुल 84,97,023 अकृत्रिम चैत्यालय हैं। प्रत्येक में 108-108 प्रतिमाएँ हैं। इन सबको मेरा मन, वचन और काय से बारम्बार नमस्कार हो। (त्रिसा, 451)
 

1. अकृत्रिम चैत्यालयों एवं प्रतिमाओं का कुल योग कितना है ?

कहाँ

चैत्यालय

प्रतिमाएँ

भवनवासी

7,72,00,000x108     

= 8, 33, 76, 00, 000

मध्यलोक

458x108       

= 49, 464

स्वर्ग तथा अहमिंद्र में

84,97, 023 x 108

= 91, 76, 78, 484

कुल योग

8,56,97, 481 x 108

= 9, 25, 53, 27,948


कहा भी है -

नवकोडिसया पणवीसा, लक्खा तेवण्ण सहस्स सगवीसा।

नव सय तह अडयाला जिणपडिमाकिट्टिमां वंदे॥

 

नौ सौ पच्चीस करोड़ त्रेपन लाख सताईस हजार नौ सौ अड़तालीस हैं। इन समस्त अकृत्रिम प्रतिमाओं की मैं वंदना करता हूँ।  

 

2. अकृत्रिम चैत्यालयों का मुख किस दिशा में है ? 
अकृत्रिम चैत्यालयों का मुख पूर्व दिशा में है।

 विशेष - अष्ट प्रातिहार्यों सहित अरिहंत प्रतिमा। अष्ट प्रातिहार्यों से रहित सिद्ध प्रतिमा ॥(त्रि.सा. 1002) 


3. अकृत्रिम चैत्यालयों की लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई कितनी है ?
इन अकृत्रिम चैत्यालयों की लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई निम्नलिखित है

 

लम्बाई

चौड़ाई

ऊँचाई

उत्कृष्ट

100 योजन

50 योजन

75 योजन

मध्यम

50 योजन

25 योजन

37 1/2 योजन

जघन्य

25 योजन

12 1/2 योजन

18 3/4 योजन


4. अकृत्रिम चैत्यालयों के द्वार की ऊँचाई व चौड़ाई कितनी है ?

 

ऊँचाई

चौड़ाई

 

उत्कृष्ट

16 योजन

योजन

 

मध्यम

योजन

योजन

 

जघन्य

योजन

योजन

 


नोट- छोटे द्वारों की लम्बाई 8 योजन, चौड़ाई 4 योजन, ऊँचाई 2 योजन है। (त्रि.सा., 978) 


5. अकृत्रिम चैत्यालयों की नींव कितनी है ?
उत्कृष्ट 2 कोस, मध्यम 1 कोस, जघन्य /कोस। 


6. कौन-कौन से अकृत्रिम चैत्यालय उत्कृष्ट, मध्यम व जघन्य लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई वाले हैं ?
भद्रशालवन, नन्दनवन, नन्दीश्वरद्वीप और वैमानिक देवों के विमानों में जो जिनालय हैं वे उत्कृष्ट ऊँचाई आदि वाले हैं तथा सौमनसवन, रुचकगिरि, कुण्डलगिरि, वक्षार पर्वत, इष्वाकार पर्वत, मानुषोत्तर पर्वत और कुलाचलों पर जो जिनालय हैं उनकी ऊँचाई आदि मध्यम एवं पाण्डुक वन स्थित जो जिनालय हैं, उनकी ऊँचाई आदि जघन्य है। (त्रिसा, 979-980)

 

7. जम्बूद्वीप के विजयार्ध पर्वत तथा जम्बू, शाल्मली वृक्षों के चैत्यालय की लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई कितनी है ?
लम्बाई 1 कोस, चौडाई 1/2 कोस व ऊँचाई 3/4कोस। (सि.सा.दी. 6/103) 

 

8. धातकीखण्ड व पुष्करार्ध के विजयार्ध तथा वृक्षों के चैत्यालय की लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई कितनी है ?
लम्बाई 2 कोस, चौडाई 1 कोस व ऊँचाई 1 1/2कोस। (जै. सि.को.,2/304)

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