(तीनलोक के जिनमंदिर पुस्तक से – गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित )
(प्रश्नोत्तर लेखिका- आ़. सुदृष्टिमती माताजी)
उत्तर- गोल आदि आवासो का उत्कृष्ट विस्तार १२ हजार २०० योजन तथा जघन्य विस्तार पौन योजन अर्थात् तीन कोस है।
प्रश्न ५०२ – व्यन्तर देवो में जन्म लेने के कारण बतलाओ?
उत्तर- जो कुमार्ग में स्थित है, दूषित आचरण करने वाले है सम्पत्ति में अत्यन्त रूप से आसक्त है, बिना इच्छा के विषयों से विरक्त है अकाम निर्जरा करने वाले है अग्नि आदि के द्वारा मरण को प्राप्त करते है। संयम लेकर इसे मलिन करते है या विनाश करते है सम्यक्तव से शून्य है, पंचाग्निादि तप करके मदकषायी है ऐसे कर्मभूमि मनुष्य या तिर्यंच इन व्यन्तर देवो की पर्याय में जन्म लेते है। भोगभूमियाँ मरकर,भावन व्यन्तर व ज्योतिषी देवो में उत्पभ होते है।
प्रश्न ५०३ – देवपर्याय से मरकर जीव कहाँ कहाँ जन्म ले सकता है?
उत्तर- इस देव पर्याय से च्युत होकर सम्यक्तव से सहित देव उत्तम मनुष्य पर्याय प्राप्त करते है जो सम्यक्तव रहित हो मरण करते है वे देव कर्मभूमि के मनुष्य या पंचेन्द्रिय, सैनी, पर्याप्तिक, तिर्यंचो में जन्म लेते है। कदाचित विषयों की अत्यन्त आसक्ति के कारण मरने के ६ महिने से पहले से विलाप व सन्ताप करते हुये मरकर एकेन्द्रिय पर्याय में पृथ्वीकायिक, जलकायिक और प्रत्येक वनस्पति कायकि जीव भी हो जाते है।
प्रश्न ५०४ – देवो के शरीर की अवगाहना बतलाइये?
उत्तर- किन्नरादि आठो व्यन्तर देवो में से प्रत्येक की ऊँचाई १० धनुष प्रताण है।
प्रश्न ५०५ – देवो के जन्म लेने के स्थान को क्या कहते है?
उत्तर- देवो के जन्म लेने के स्थान को उपपाद शय्या कहते है। जिस पर जन्म लेकर पुण्यप्रभाव से १६ वर्ष के युवक समान हो जाते है। अंतर्मुहूर्त में ही शरीर की पर्याप्ति पूर्ण हो जाती है।
प्रश्न ५०६ – व्यन्तर देवोर आहार कैसा होता है?
उत्तर- किन्नरादि देव देवियाँ दिव्य अमृतमयर आहार का मन से ही उपभोग करते है। उनके कवलाहार नहीं है। अत: देवो के आहार का नाम मानसिक आहार है।
प्रश्न ५०७ – व्यन्तर देवो का प्रमाण बतलाइये?
उत्तर- पल्यप्रमाण आयु से युक्त देवो के आहार का काल ५ दिन एवं १० हजार वर्ष आयु वाले देवो का आहार दो दिन बाद होता है
प्रश्न ५०८ – देवो के उच्छ्वास का प्रमाण बतलाइये?
उत्तर- व्यन्तर देवो में जो पल्यप्रमाण आयु वाले देव है वे ५ मुहूर्तो में एवं जो १० हजार वर्ष की आयु वाले है वे सात उच्छ्वास प्रमाण काल के अनंतर उच्छ्वास लेते है।
प्रश्न ५०९ – देवो के अवधिज्ञान का विषय बतलाओ?
उत्तर- जघन्यआयु १०००० वर्ष प्रमाण आयु वालो की जघन्य अवधि का विषय ५ कोस है एवं उत्कृष्ट अवधि का विषय ५० कोस है। पल्योपम प्रमाण आयु वाले व्यन्तर देवो की अवधि का विषय नीचे व ऊपर एक लाख योजन प्रमाण है।
प्रश्न ५१० – व्यन्तर देवो की शक्ति कितनी होती है?
उत्तर- १०हजार वर्ष प्रमाण आयु का धारक प्रत्येक व्यन्तर देव १०० मनुष्यों को मारने व पालने के लिये समर्थ है एवं १५० धनुष प्रमाण विस्तार व मोटाई से युक्त क्षेत्र को अपनी शक्ति से उखाड़कर अन्यत्र फेकने की सामर्थ्य रखता है।
प्रश्न ५११ – व्यन्तर देवो कि विक्रिया का क्यार प्रमाण है?
उत्तर- १०हजार वर्ष की आयु का धारक व्यन्तर देव उत्कृष्ट रूप से १०० रूपो की और जघन्यरूप से ७ रूपो की विक्रया कर लेता है और मध्यमरूप से १०० से नीचे नीचे विविध प्रकार की विक्रिया करता है। बाकी के व्यन्तर वासी देवो में से प्रत्येकर देव अपने अपने अवधिज्ञान का जितना क्षेत्र है उतने मात्र क्षेत्र को विक्रिया के बल से पूर्णर कर सकते है।
प्रश्न ५१२ – व्यन्तर देवो में सम्यक्तव उत्पत्ति का कारण बतलाइये?
उत्तर- कदाचिद् ये देव जातिस्मरण, देव ऋद्धिदर्शन, जिनबिम्बदर्शन और धर्मश्रवण के निमित्तो से सम्यक्तव को प्राप्त कर लेते है।
प्रश्न ५१३ – जाति स्मरण से कैसे सम्यक्तव को प्राप्त करते है?
उत्तर- कदाचिद् इन देवो में से किसी को जातिस्मरण होकर कई कई भवो के पाप पुण्यर कृत्य स्मृति में आ जाते है, तब ये पाप भीरू होकर पापो की एवं मिथ्यात्व की आलोचना करते हुये सम्यक्तव को ग्रहण कर लेते है।
प्रश्न ५१४ – व्यन्तर देवो के देवऋद्धि दर्शन से कैसे सम्यकदर्शन होता है?
उत्तर- कदाचिद् कोई देव अपने से महान विभूतियों को देखकर अवधिज्ञान से अपने और उसकेर पाप पुण्य का मोल लगाने लगते है और सोचते है कि मैने मंद पुण्य किया था, जिससे की सौधर्म आदि के वैभव से शून्य रहा हूँ। इत्यादि सोचते हुये कर्म को मंद करते हुये सम्यक्तव को ग्रहण करते है।
प्रश्न ५१५ – व्यन्तर देव जिनबिम्ब दर्शन से कैसे सम्यक्तवर ग्रहण करते है?
उत्तर- कदाचिद् ये देव जिनेन्द्र के पंचकल्याणको के महोत्सव में आते है और किन्हींर अतिशयशाली महिमा को देखते है अथवार अकृतित्र जिन चैत्यालय के दर्शन करते है तब इन्हें सम्यक्तव की उत्पत्ति हो जाती है।
प्रश्न ५१६ – धर्मश्रवण से सम्यक्तव उत्पत्ति का काराण कैसे होता है?
उत्तर- कदाचिद् मध्यलोक में मुनियों से धर्मश्रवण करते है। कदाचिद् देवो की सभा में ही धर्मश्रवणर करते है। जिसके स्वरूप सम्यक्तव विधि को प्रगट कर लेते है पुन: सम्यक्तव के प्रभाव से मरण काल में सन्ताप और संक्लेशर न करते हुये शाम्ति भाव से देवपर्याय से च्यूत होकर मनुष्य भव प्राप्त कर लेते है एवं सम्यक्तव के फल स्वरूप सम्यक्तव चारित्रर को ग्रहण करके मोक्ष को प्राप्त कर लेते है।
प्रश्न ५१७ – व्यन्तर देवो का विशेष वर्णन बतलाओ?
उत्तर-औपपादिक अध्युषित और आभियोग्य इस प्रकार से व्यन्तर देव तीन प्रकार के भी होते है। मेरू प्रमाण ऊँचे मध्यलोक में ऊर्ध्व लोक में और अधोलोक में व्यन्तर देवो के निवास है। व्यन्तरो के भवन भवनपुर और आवास तीनो ही आवास प्राकार से वेष्टितर बतलाये गये है। सब भवनो के चारो और वेदिकायें मानी जाती है। जो कि परकोटे के सदृशर है। ये परकोटे महाभवनों के दो कोस ऊँचे तथार अन्य भवनों के १०० हाथ ऊँचे है।
समुद्र स्थित द्वीपो में भवनपुर होते है और तालाब पर्वत एवं वृक्षो के आश्रित आवास होते है। पुरो में कितने ही गोल त्रिकोण तथा चतुष्कोण भी होते है। इनमें क्षुद्रपुर १ योजन विस्तीर्ण तथा महापूर १ लाख योजन विस्तीर्ण होते है ये पूर असंख्यात द्वीप समुद्रो में स्थित है। ये रत्नमयी पूर रमणीय बहुतप्रकार के आकार वाले है।
प्रश्न ५१८ – व्यन्तरों के असंख्यात जिनमन्दिर उनमें प्रतिमा का प्रमाण बतलाओ?
उत्तर- व्यन्तर देवो के स्थान होने से उनमें स्थित जिनमन्दिर भी असंख्यात प्रमाण है। उन सभी मन्दिरों में एक सौ आठ, एक सौ आठ प्रमाण जिनप्रतिमायें विराजमान है। और बाकी सब व्यवस्था भवनवासी देवो के जिनमन्दिर के सदृश ही है।
प्रश्न ५१९ – व्यन्तर देवो की विशेषता बतलाये?
उत्तर- ये व्यन्तर देव क्रीड़ा प्रिय होने से इस मध्यलोक में यत्र तत्र शून्यस्थान वृक्षो की कोटर, श्मशान भूमि आदि में भी विचरण करते रहते है। कदाचित् , क्वचिद् किसी से पूर्वजन्म का विरोध होने से उसे कष्ट भी दियार करते है। किसी पर प्रसन्न होकर उसकी सहायता भी करते है। जब सम्यग्दर्शन को ग्रहणर कर लेते है तब पापभीरू बनकर धर्मकार्यो में ही रूचि लेते है।
प्रश्न ५२० – किन्नरो के १० भेदो के नाम बतलाओ?
उत्तर- किंपुरूष, किन्नर, हृदयंगम, रूपवाली, किन्नर किन्नर, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय, अनिन्दित, और ज्येष्ठ ये १० प्रकार के किन्नर जाति के देव होते है।
प्रश्न ५२१ – किन्नरोर के २ इन्द्र, उनके नाम बतलाओ, उनकी दो दो अग्रदेवियों के नाम बतलाओ?
उत्तर- किन्नर के दो इन्द्र्र – किंपुरूष और किन्नर किंपुरूष की दो अग्रदेवियाँ- अवतंसा केतुमती। किन्नर की दो अग्रदेवियाँ- रतिषेणा रतिप्रिया।
प्रश्न ५२२ – किंपुरूष के १० भेदो के नाम बतलाओ?
उत्तर- पुरूष, पुरूषोत्तम, सत्पुरूष, महापुरूष, पुरूषप्रभ, असिपुरूष, मरू मरूदेव, मरूप्रभ और यशस्वान् ।
प्रश्न ५२३ – किंपुरूष के दो इन्द्रो के तथा उन इन्द्रो की दो दो देवियो के नाम बतलाओ?
उत्तर- किंपुरूषर के दो इन्द्र- सत्पुरूष, महापुरूष सत्पुरूष इंद्र की २ देवियाँ रोहिणी नवमी। महापुरूष इन्द्र की २ देवियाँ ह्नी पुष्पवती।
प्रश्न ५२४ – महोरग जाति के व्यन्तर के १० भेदो का नाम बतलाओ?
उत्तर- महोरग जाति के १० भेद – भुजंग भुजंगशाली, महाकाय, अतिकाय, स्कंधशाली, मनोहर, अशनिजव, महेश्वर, गम्भीर, और प्रियदर्शन।
प्रश्न ५२५ – महोरोगर देवो के दो इन्द्रो के उनकी दो दो देवियों के नाम बतलाओ?
उत्तर- महोरग के दो – महाकाय अतिकाय
महाकाय की दो देवियाँ- भोगा भोगावती।
अतिकाय की दो देवियाँ- अनिंदिता, पुष्पगंधी।
प्रश्न ५२६ – गंधर्वजाति के देवो के १० भेद बतलाइये?
उत्तर- हाँ हा, हू हू, तुंबरू, वासव, कदम्ब,महास्वर, गीतरति, गीतरस और वज्रमान।
प्रश्न ५२७ – गधर्वजाति के दोवोर के भेद, व उनकी दो दो देवियोंर के नाम बतलाओ?
उत्तर- गधर्वजातिर के दो दोवो के नाम- गीतरति, गीतरस।
गीतरति की दो देवियाँ- सरस्वति, स्वरसेना।
मीतरस की दो देवियाँ – नंदिनी प्रियदर्शना।
प्रश्न ५२८ – यक्षजाति देवो के १२ भेद बताओ?
उत्तर- मणिभद्र, पूर्णभद्र, शैलभद्र, मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, सर्वभद्र, मानुष, धनपाल, स्वरूप यक्ष, यक्षोत्तम, और मनोहरण ये १२ भेद यक्षो के है।
प्रश्न ५२९ – यक्षजाति के देवो के भेद और उनकी दो दो देवियो के नाम बतलाओ?
उत्तर- यक्षजाति देव के २ इन्द्र- मणिभद्र और पूर्णभद्र मणिभद्र की २ देवियाँ- कुंदार बहुपुत्र। पूर्णभद्र की २ देवियाँ- तारा और उत्तमा।
प्रश्न ५३० – राक्षसो के ७ भेद बतलाइये?
उत्तर- भीम, महाभीम, विनायक, उदक, राक्षस, राक्षस-राक्षस, ब्रह्म राक्षस ये सात भेद राक्षस है।
प्रश्न ५३१ – राक्षस जाति के देवो के दो भेद और उनकी दो दो देवियों के नाम बतलाओ?
उत्तर- राक्षस जाति देवोर के २ भेद – भीम, महाभीम।
भीम की २ देवियाँ- पद्मा, वसुयित्रा। महाभीम की दो देवियाँ- रत्नाढया कंचनप्रभा।
प्रश्न ५३२ – भूत जाति के ७ भेदो के नाम बतलाओ?
उत्तर- सुरूप, प्रतिरूप, भूतोत्तम, प्रतिभूत, महाभूत, प्रतिच्छभ और आकाशभूत ये भूतजाति देवो के ७ भेद है।
प्रश्न ५३३ – भूतजाति के देवो के २ भेद और उनकी देवियों के दो दो भेद बतलाओ?
उत्तर- भूतजाति के दो इन्द्रों के नाम- सुरूप और प्रतिरूप।
सुरूप की २ देवियाँ- रूपवती और बहुरूपा
प्रतिरूप की २ देवियाँ- सुमुखी और सुसीमा
प्रश्न ५३४ – पिशाचों के १४ भेद बतलाओ?
उत्तर- कुष्मांड, यक्ष, राक्षस, संमोह, तारक, अशुचि काल, महाकाल, शुचि सतालक, देह, महादेह, तूष्णिक और प्रवचन ये पिशाचों के १४ भेद है।
प्रश्न ५३५ – पिशाची देवो के, तथा उनकी दो दो देवियों के भी नाम बतलाओं?
उत्तर- पिशाची देवो के दो इन्द्र- काल महाकाल।
काल की २ अग्र देवियाँ कमला और कमलप्रभा।महाकाल की दो अग्रदेवियाँ –उत्पला सुदर्शन
प्रश्न ५३६ – व्यन्तरो के इन इन्द्रो की आयु का प्रमाण बतलाओ?
उत्तर- इन इन्द्रों की आयु का प्रमाण १ पल्य है।
प्रश्न ५३७ – व्यन्तरों के इन्द्रो की देवियों की कितनी आयु होती है?
उत्तर- इन्द्रो के अग्रदेवियों की आयु अर्धपल्य है।
प्रश्न ५३८ – अग्रदेवियों में से प्रत्येक के परिवार देवियों का प्रमाण क्या है?
उत्तर- अग्रदेवियों में से प्रत्येक के १००० हजार प्रमाण परिवार देवियाँ होती है।
प्रश्न ५३९ – आठ प्रकार के व्यन्तर देवो में प्रत्येक के दो दो इन्द्र होकर कुल कितने इन्द्र होते है?
उत्तर- कुल इन्द्र १६ हो जाते है।
प्रश्न ५४० – १६ इन्द्रो में प्रत्येक कितनी रूपवती गणिका महत्तरी होती है?
उत्तर- १६ इन्द्रो में प्रत्येक के २-२ रूपवती गणिका महत्तरी होती है।
प्रश्न ५४१ – व्यन्तर देवो के शरीर का वर्ण बतलाइये?
उत्तर- किन्नर- पियंगु, कुंपुरूष – सुवर्णसदृश, महोरग- कालश्यामल, गंधर्व- शुद्ध सुवर्ण, यक्ष- कालश्यामल, राक्षस- शुद्धश्याम, भूत कालश्यामल, पिशाच- कज्जल के सदृश।
प्रश्न ५४२ – व्यन्तरों के दो इन्द्र है उनमें क्या विशेषता है?
उत्तर- इन इन्द्रो में जिनका नाम पहले उच्चारण किया गया है वे ८ दक्षिणेन्द्र है एवं जिनका नाम बाद में है वे ८ उतरेन्द्र है
प्रश्न ५४३ – व्यन्तर देवो के नगर कहाँ है?
उत्तर- व्यन्तर देवो के नगर अंजनक, वज्रघातुक, सुवर्ण, मन:शिलक, वज्ररजत, हिंगुलक और हरिताल द्वीप में स्थित है।
इनमें से अपने नाम से अंकित नगर मध्य में एवं प्रभकांत, आवर्त, और मध्य इन नामो से अंकित नगर पूर्व आदि दिशाओं में होते है। जैसे किन्नर किन्नरत्रभ, किन्नरकांत, किन्नरावर्त और किन्नरमध्य ये ५ नगर के नाम है। इसमें नगर मध्य में है। शेष ४ नगर पूर्वादिर दिशाओं में क्रम से है।
प्रश्न ५४४ – दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र का निवास कहाँ है?
उत्तर- इन द्वीपो में दक्षिणेन्द्र दक्षिण भाग में एवं उत्तरेन्द्र, उत्तरभाग में निवास करते है।
प्रश्न ५४५ – नगरो के बाहर पूर्वोदि दिशाओं में क्या है?
उत्तर- समथौकोण से स्थित इन पुरो के सुवर्णमय कोट है। इन नगरों के बाहर पूर्वादि दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में अशोक अशोक सप्तच्छद, चम्पक तथा आम्रवृक्षो के वनसमूह स्थित है
प्रश्न ५४६ – तीर्थंकर भगवान के जन्मकल्याणक के समय ऐरावत हाथी कौन जाति के देव बनते है?
उत्तर- अभियोग्य जाति का देव ऐरावत हाथी बनता है।
प्रश्न ५४७ – प्रत्येक इन्द्र के सामानिक देव कितने होते है?
उत्तर- प्रत्येक इन्द्र के चार हजार सामानिक देव होते है।
प्रश्न ५४८ – प्रत्येक इन्द्र के आत्मरक्षक देव कितने होते है?
उत्तर- प्रत्येक इन्द्र के आत्मरक्षक देव १६ हजार देव होते है।
प्रश्न ५४९ – प्रत्येक इन्द्र के आभ्यन्तर परिषद् देव कितने होते है?
उत्तर- प्रत्येक इन्द्र के आभ्यन्तर परिषद देव ८००० हजार होते है।
प्रश्न ५५० – प्रत्येक इन्द्र के मध्यपारिषद देव कितने होते है?
उत्तर- प्रत्येक इन्द्र के मध्य पारिषद् देव १०,००० हजार है।
प्रश्न ५५१ – प्रत्येक इन्द्र के बाह्य पारिषद देव कितने होते है?
उत्तर- प्रत्येक इन्द्र के बाह्य पारिषद देव १२,००० होते है।
प्रश्न ५५२ – प्रत्येक इन्द्रो की अनीक (सेनायें) कितनी होती है?
उत्तर- प्रत्येक इन्द्रो की अनीक (सेनायें) हाथी, घोड़ा, पदासि, गंधर्व, नर्तक, रथ और बैल इस प्रकार ७ सेनायें होती है।
प्रश्न ५५३ – हाथी आदि की पृथक पृथक कितनी कक्षायें स्थित है?
उत्तर- हाथी आदि की पृथक पृथक ७ कक्षायें होती है।
प्रश्न ५५४ – प्रथमकक्षा में हाथी का प्रमाण बतलाओ?
उत्तर- प्रथमकक्षा में हाथी सका प्रमाण २८००० है द्वितीय आदि कक्षाओं में हाथी दूने दूने है।
प्रश्न ५५५ – प्रत्येक इन्द्र के हाथियों का प्रमाण बतलाओ?
उत्तर- प्रत्येक इन्द्र के हाथियों का प्रमाण ३५,५६,००० है।
प्रश्न ५५६ – प्रत्येक इन्द्र के ७ अनिको का प्रमाण कितना है?
उत्तर- प्रत्येक इन्द्र की ७ अनिको का प्रमाण २ करोड़ ४८ लाख ९२ हजार है।
प्रश्न ५५७ – सात अनीको देवो के महत्तर देवो के नाम बतलाओ?
उत्तर- सात अनीको के महत्तर देवो के नाम क्रमश: सुज्येष्ठ सुग्रीव, विमल, मरूदेव, श्रीदाम, दामश्री और विशालाक्ष है। इसीप्रकार इन देवो (इन्द्रो) के प्रकीर्णक,आभियोग्य और किल्विषिक जाति के भी देव होते हैै।
इसप्रकार के परिवार से सहित सुखो का अनुभव करने वाले व्यन्तर देवेन्द्र अपने अपने पुरों में बहुत प्रकार की क्रीड़ाओं को करते हुये आनंद में मग्न रहते है।
प्रश्न ५५८ – अपने अपने इन्द्रों की पाश्र्वभागों में किनके नगर होते है?
उत्तर- अपने अपने इन्द्रियों की नगरियों के पाश्र्वभागों में उत्तमवेदी आदि संयुक्त गणिका महत्तरियों के नगर होते है। उन पुरियों में से प्रत्येक का विस्तार ८४,००० योजन प्रमाण है। और इतनी ही लम्बाई है।
प्रश्न ५५९ – व्यन्तर देवो के पहले उनके पश्चात् अर्थात् ऊपर और आगे कौन निवास करता है?
उत्तर- भवनवासी देवो के ऊपर व्यन्तर देव, उनके ऊपर नीचोप पातिक, उनसे ऊपर दिग्वासा्र देव स्थित है आगे आगे जाकर आकाशोत्पभ देव है उनकेर ऊपर ज्योतिर्वासी देव है पुन: कल्पवासी,स कल्पातीत देव रहते है। अंत ५ ५ अकुदिश अनुत्तर देव और उसके आगे सिद्ध परमेष्ठी विराजमान है।
प्रश्न ५६० – चित्रा पृथ्वी से कितने योजन की ऊँचाईस पर ज्योतिषी देव रहते है बतलाइये?
उत्तर- चित्रा पृथ्वी से ७९० योजन की ऊँचाई पर, चित्रापृथ्वी से ८०० योजन सूर्यदेव- आयु १ पल्य १००० वर्ष । इस पृथ्वी से ८० योजन ऊपर चंद्रदेव आयु १ पल्य १०००००- (१ लाख वर्ष) आयु।
प्रश्न ५६१ – वेयानिक देवो के दो भेदो के नाम बतलाओ?
उत्तर- वेयानिक देवो के दो भेद- कल्प और कल्पातीत।
प्रश्न ५६२ – चित्रा पृथ्वी से सौधर्मादि का कल्प का कितना अन्तर है?
उत्तर- चित्रापृथ्वी से ९९०४० योजन ऊपर जाकर सौधर्मादि के १२ कल्प है।
प्रश्न ५६३ – मध्यलोक से कितने ऊपर कल्पातीत देव रहते है?
उत्तर- मध्यलोक से ६ राजु के ऊपर अहमिंद्र आदि कल्पातीत देव है।
प्रश्न ५६४ – मध्यलोक से सिद्धशिला कितनी ऊँची है?
उत्तर- कुछ (१ लाख ४० योजन मध्यलोक में आ गया है) कम ७ राजु के ऊपर- सिद्धशिला है जिस पर अनंतानंत सिद्ध विराजमान है। उन सबको मेरा योग शुद्धि पूर्वक त्रिकाल नमस्कार है।
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