छह ढाला प्रश्नोत्तरी (ढाल 5 ) !! Chhah Dhala Prashnottari ( Dhal 5 )

  

पांचवीं ढाल


प्रश्न १ – अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?

उत्तर – संसार, शरीर और भोगों के स्वभाव का पुन: पुन: चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न २ – अनुप्रेक्षा कितनी होती हैं ? उनके नाम बताइए ?

उत्तर – अनुप्रेक्षाएँ बारह होती हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं-१. अनित्य २. अशरण ३. संसार ४. एकत्व ५. अन्यत्व ६. अशुचि ७. आस्रव ८. संवर ९. निर्जरा १०. लोक ११. बोधिदुर्लभ और १२. धर्म।

प्रश्न ३ – इन बारह भावनाओं का चिन्तवन करने से क्या फल मिलता है ? 

उत्तर – जैसे हवा के लगने से अग्नि धधक उठती है, उसी प्रकार इन बारह भावनाओं के चिन्तवन से समतारूपी सुख जागृत हो जाता है। इन भावनाओं के द्वारा जब जीव आत्मा को पहचानता है, तब ही जीव मोक्षरूपी सुख को प्राप्त करता है। 

प्रश्न ४ – अनित्य भावना का क्या स्वरूप है ?

उत्तर – जवानी, घर, गाय, धन, स्त्री, घोड़ा, हाथी, कुटुम्बी, नौकर और इन्द्रिय- भोग आदि सब क्षणभंगुर-विनाशीक हैं, ऐसा बार-बार चिंतवन करना अनित्य अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न ५ – अशरण भावना का लक्षण बताइए ?

उत्तर – जैसे हिरण को सिंह नष्ट कर देता है, वैसे ही इन्द्र, नरेन्द्र, नागेन्द्र और खगेन्द्र (विद्याधर) आदि को भी मृत्यु नष्ट कर देती है अर्थात् संसार में कोई शरण नहीं है, ऐसा बार-बार चिंतवन करना अशरण अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न ६ – संसार अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?

उत्तर – जीव चारों गतियों के दु:ख भोगता हुआ पंच परावर्तन करता है और यह संसार सब प्रकार से असार है इसमें थोड़ा सा भी सुख नहीं है, ऐसा चिन्तवन करना संसार अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न ७ – एकत्व भावना का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – अपने शुभ कर्मों के अच्छे और अशुभ कर्मों के खराब फल को जीव अकेला ही भोगता है, पुत्र और स्त्री आदि कोई भी हिस्सेदार नहीं होते, वे सब मतलब के साथी हैं, ऐसा चिंतवन करना एकत्व अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न ८ – अन्यत्व अनुप्रेक्षा से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर – मैं शरीर से भिन्न हूँ, फिर स्त्री, पुत्र, धन आदि बाह्य परिग्रह मेरे कैसे हो सकते हैं अर्थात् आत्मा से सभी पदार्थ पृथक् हैं, ऐसा चिन्तवन करना अन्यत्व अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न ९ – अशुचि भावना का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – यह शरीर मांस-खून-पीप और मल-मूत्रादि का घर है, इस तरह शरीर की अपवित्रता का चिन्तवन करते हुए आत्मा की पवित्रता को प्राप्त करने का चिन्तन करना अशुचि अनुप्रेक्षा है। ===

प्रश्न १० – आस्रव भावना किसे कहते हैं ?

उत्तर – कर्मों का आना आस्रव है और वह आस्रव बहुत दु:ख देने वाला है, ऐसा जानकर उससे बचने का चिन्तवन करना आस्रव अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न ११ – संवर अनुप्रेक्षा का स्वरूप बताइए ?

उत्तर – जो शुभ और अशुभ भाव नहीं करते तथा आत्मा के चिन्तन में चित्त लगाते हैं, वे कर्मों के आस्रव को रोकते हैं और संवर को पाकर सुख पाते हैं, ऐसा चिन्तवन करना संवर अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न १२ – निर्जरा भावना किसे कहते हैं ?

उत्तर – संवरपूर्वक तप के बल से संचित कर्मों का झड़ जाना निर्जरा है, ऐसा चिन्तवन करना निर्जरा अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न १३ – लोक अनुप्रेक्षा का लक्षण बताइए ?

उत्तर – छह द्रव्यों से भरे हुए लोक को न किसी ने बनाया है, न कोई इसे धारण किए है और न कोई इसे नष्ट कर सकता है, ऐसे संसार में समता के बिना यह जीव भटकता हुआ दु:ख भोगता रहता है, ऐसा चिन्तवन करना लोक अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न १४ – बोधि दुर्लभ भावना से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर – संसार में अति दुर्लभ सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति का बार-बार चिन्तवन करना बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न १५ – धर्म भावना का स्वरूप प्रतिपादित कीजिए ?

उत्तर – मिथ्यात्व से भिन्न सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र आदि जो भाव हैं, वे धर्म कहलाते हैं। जब यह जीव इस धर्म को धारण करता है तभी मोक्ष सुख को पाता है, ऐसा विचार करना धर्म अनुप्रेक्षा है।

प्रश्न १६ – मुनिधर्म को सुनने की प्रेरणा देते हुए कविवर क्या कहते हैं ?

उत्तर – मुनियों के धर्म को, उनके कर्तव्यों को सुनकर भव्यजीवों को मुनिव्रत धारण करके आत्मानुभूति करना चाहिए।

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