तीसरी ढाल
काव्य प्रश्नोत्तरी
तर्ज-दीदी तेरा……………………
प्रश्न १ – प्रश्नों का कुछ लेकर बहाना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।
यही चाहे सारा जमाना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।टेक.।।
क्या कहते हैं कविवर तृतिय ढाल में, सुन लो प्राणी इसी से तो ज्ञान बढ़ेगा।
कहाँ सच्चा सुख है निराकुल निरापद, बताओ भला उसका मारग है कैसा ।
उसके भेद कितने बताना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।१।।
उत्तर – मोक्ष में पूर्ण निराकुल और निरापद सच्चा सुख पाया जाता है। सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र मोक्ष के मार्ग हैं। यह मोक्षमार्ग दो तरह का माना है-१. निश्चय मोक्षमार्ग २. व्यवहार मोक्षमार्ग।
प्रश्न २ – जो निश्चय व व्यवहार शिवपथ रत्नत्रय, क्या परिभाषा उनकी बताओ रे भाई ?जो व्यवहार सम्यक्त्व सुज्ञान चारित्र, की क्या व्यवस्था जिनागम में आई ?किसको किसका हेतू है माना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।२।।
उत्तर -निश्चय रत्नत्रय पूर्ण वास्तविक, आत्मा के सच्चे स्वरूप को प्रगट करता है। परद्रव्यों से भिन्न आत्मा को मानकर उसकी श्रद्धा करना ‘‘निश्चय-सम्यग्दर्शन’’ है, उसी आत्मस्वरूप को विशेषरूप से जानना ‘‘निश्चय सम्यग्ज्ञान’’ है और आत्मा के स्वरूप में ही लीन हो जाना ‘‘निश्चय सम्यक्चारित्र’’ है। इस निश्चय रत्नत्रय को प्राप्त कराने में व्यवहार रत्नत्रय को हेतु माना गया है।प्रश्न ३ – जो व्यवहार सम्यक्त्व छहढाला में है, कहा उसका लक्षण बताओ सभी को ?जो तत्त्वों की संख्या बताई है कवि ने, उन्हें नाम लेकर बताओ सभी को ?इनका उत्तर सुन्दर बताना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।३।।
उत्तर -जिनेन्द्र भगवान द्वारा उपदिष्ट तत्त्वों का जैसे का तैसा श्रद्धान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन है। तत्त्व सात हैं-जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। अहिंसा धर्म, क्षुधादि अट्ठारह दोषरहित देव और निर्ग्रंथ गुरु पर श्रद्धान करना भी व्यवहार सम्यग्दर्शन है।प्रश्न ४ – चैतन्यमय जीव आत्मा के कितने, भेदों का वर्णन बताता जिनागम ?उनकी क्या पहचान बाहर से होती, अन्तर में उनके क्या कहता है आगम ?सम्यग्दृष्टी है कौन माना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।४।।
उत्तर – चैतन्य जीव आत्मा के तीन भेद हैं-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। जो शरीर और आत्मा को एक मानते हैं, वे बहिरात्मा कहलाते हैं। जो शरीर और आत्मा को पृथक्-पृथक् मानते हैं, वे सम्यग्दृष्टि अन्तरात्मा कहलाते हैं।प्रश्न ५ – किसे कहते हैं अन्तरात्मा तथा उनके, हैं भेद कितने समझ में न आए ?इसी भांति परमातमा के स्वरूप, व भेदों को कवि ने कैसे बताए ?इनके उत्तर तुमसे है पाना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।५।।
उत्तर -जो भेदविज्ञान से आत्मा और शरीरादि परपदार्थ को भिन्न जानते हैं, वे अन्तरात्मा हैं। अन्तरात्मा के तीन भेद हैं-उत्तम, मध्यम और जघन्य। परमात्मा के दो भेद हैं-सकल परमात्मा और निकल परमात्मा। शरीर सहित होने से अरिहंत भगवान सकल परमात्मा कहलाते हैं।प्रश्न ६ – अशरीरी सिद्धों का है कौन सा तन, किन कर्ममल को है जीता उन्होंने ?किस सुख को वे भोगते सिद्धभूमि में, किस पद को पाया है शाश्वत उन्होंने ?उत्तर चाहूँ प्रश्नों का पाना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।७।।
उत्तर – ज्ञानरूपी शरीर के धारी सिद्ध भगवान तीन प्रकार के कर्ममल अर्थात् द्रव्यकर्म-भावकर्म और नोकर्म मल से रहित होते हैं, वे निकल परमात्मा हैं। वे सिद्धशिला पर अनन्तसुख को भोगते हुए अनन्तकाल तक सिद्धपद में स्थित रहते हैं।प्रश्न ७ – बिना चेतना के है तत्त्व अजीव, कहो उसके कितने प्रकार बताए ?पुद्गल के परमाणुओं में भी बोलो, कितने गुणों के अस्तित्व पाएँ ?।द्रव्य धर्माधर्म बताना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।७।।
उत्तर – चैतन्य शून्य जो अजीव तत्त्व है, उसके पाँच भेद हैं-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। पुद्गल के परमाणुओं में २० गुण होते हैं-५ रस, ५ वर्ण, २ गंध और ८ स्पर्श। जो जीव और पुद्गल को चलने में सहकारी है, वह धर्मद्रव्य है तथा जीव-पुद्गल को जो ठहरने में सहायक है, वह अधर्मद्रव्य कहा जाता है।प्रश्न ८ – नीले गगन को न आकाश मानो, मगर कैसा आकाश है यह बताओ ?समय की क्रिया कहने वाला जो है, काल द्रव्य उसी के प्रभेद बताओ ?आस्रव की भी महिमा बताना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।८।।
उत्तर – जीव आदि पाँचों द्रव्यों का जिसमें निवास स्थान है, उसे आकाशद्रव्य कहते हैं। सभी द्रव्यों के परिणमन (परिवर्तन) में जो सहायक होता है, उसे कालद्रव्य कहते हैं। उसके निश्चयकाल और व्यवहारकाल की अपेक्षा दो भेद हैं। मन-वचन-काय की चंचलता तथा मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय के कारण आत्मा में जो कर्मों का आना होता है, उसे आस्रव कहते हैं।प्रश्न ९ – किसे कहते हैं बंध तत्त्व जगत में, जिसे हमने अब तक गले से लगाया ?
पुन: तत्त्व संवर का लक्षण बताओ, जिसे बंध के बाद कवि ने बताया ?
निर्जरा को भी समझाना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।९।।
उत्तर -आस्रव भावों के निमित्त से आए शुभ-अशुभ पुद्गलकर्मों का आत्मा के साथ दूध-पानी के समान एकमेक हो जाना बंधतत्त्व है। कषाय के शमन और इन्द्रियों के दमन से कर्मों का रुक जाना संवर तत्त्व है तथा तप के प्रभाव से कर्मों का झड़ जाना निर्जरा है।प्रश्न १० – कहाँ मोक्ष है उसका लक्षण भी क्या है, बताओ यही तत्त्व अंतिम कहा है?कहा कौन सा धर्म उत्कृष्ट जग में, व्यवहार सम्यक्त्व किसको कहा है ?इनके सबके उत्तर बताना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।१०।।
उत्तर – सब कर्मों से रहित अवस्था का नाम मोक्ष है, जो शाश्वत सुख को देने वाली है। इस प्रकार सात तत्त्वों पर श्रद्धा करना व्यवहार सम्यक्त्व है। दयामय धर्म जगत में सर्वोत्कृष्ट है।प्रश्न ११ – किसे कहते हैं मद वह गुण है या अवगुण, कितने हैं मद के प्रभेद बताए ?है क्या मूढ़ता उसके भी भेद कितने, सम्यक्त्व के दोष कितने हैं गाए ?थोड़े में ही सब कुछ बताना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।११।।
उत्तर – घमण्ड, मान, अभिमान को मद इस नाम से जाना जाता है, यह एक प्रकार का अवगुण है, उसके आठ भेद हैं। मूढ़ता ३ प्रकार की है। सम्यक्त्व के २५ दोष हैं-८ मद, ३ मूढ़ता, ६ अनायतन, शंका आदि ८ दोष।प्रश्न १२ – सम्यक्त्व के कितने अंग हैं बोलो, नहीं कौन शंका करे जिनवचन में ?नगन तन मुनी में घृणा जो न करते, वे किस अंग को पालते हैं जगत में ?उपगूहन का लक्षण बताना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।१२।।
उत्तर -सम्यक्त्व के आठ अंग हैं-नि:शंकित, नि:कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ़दृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना। जिनेन्द्र भगवान के वचनों में शंका नहीं करना नि:शंकित अंग है। मुनियों के शरीर को मैला देखकर घृणा न करना निर्विचिकित्सा अंग है। अपने गुणों को छिपाना और दूसरों के अवगुणों को प्रकट न करना उपगूहन अंग है।प्रश्न १३ – सम्यक्त्व के दोष मद जो बताए, उनको न क्यों करना कवि ने बताया ?किसे कहते हैं जाति मद जैन आगम, बढ़े कैसे कुल का गौरव हमारा ?दोषों को न मन से लगाना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।१३।।
उत्तर – सम्यग्दृष्टि जीवों को निज स्वरूप को समझते हुए इन मदों को नहीं करना चाहिए। मामा आदि मातृपक्ष का घमण्ड करना जातिमद है।प्रश्न १४ – किसे कहते हैं आयतन उनसे उल्टे, अनायतनों में दोष क्या है बताओ ?कुदेव कुगुरु आदि की सेवा को भी, सदोषी कहा क्यों जरा यह बताओ ?उत्तर इनका अच्छा बताना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।१४।।
उत्तर – सच्चे देव-शास्त्र-गुरु और इनके उपासक को आयतन कहते हैं और उनसे उल्टे खोटे देव-शास्त्र-गुरु एवं उनके भक्त छह अनायतन हैं। इन अनायतनों का सेवन करने से जीव संसार में ही भ्रमण करता है इसलिए इनकी मान्यता दोषपूर्ण मानी गई है।प्रश्न १५ – किस कर्मवश जीव संयम न पावे, है क्या नाम उस कर्म का यह बताओ।गृहस्थी में रहकर कमलवत् रहें कौन, इन्द्रों से भी पूज्य क्यों वह बताओ।।किन-किन उदाहरणों से जाना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।१५।।
उत्तर -चारित्रमोहनीय कर्म के कारण जीव संयम को ग्रहण नहीं कर पाता है। सम्यग्दृष्टि जीव संसार में रहकर भी जल में कमल के समान भिन्न रहता है इसीलिए वह इन्द्रों से भी पूज्य माना जाता है। सम्यग्दृष्टि की प्रवृत्ति को वेश्या की प्रीति और कीचड़ में सोने के समान बतलाई है कि जैसे वेश्या का प्रेम किसी पुरुष में स्थिर नहीं रहता है वैसे ही सम्यग्दृष्टि जीव अपने इष्टजनों में अत्यधिक आसक्त नहीं होता है एवं जैसे कीचड़ में पड़ा हुआ सोना अपनी पवित्रता नहीं छोड़ता है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि प्राणी की आत्मा गृहस्थ कीचड़ में रहते हुए भी निर्मल बनी रहती है।प्रश्न १६ – जो सम्यक् सहित हैं वे मर करके बोलो, कहाँ जाते और कहाँ पर न जाते ?त्रयकालों-त्रयलोकों में सबसे अधिक, सुखदायी किसे आचार्य बताते ?धर्मों की जड़ किसको है माना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।१६।।
उत्तर – सम्यग्दृष्टि जीव मरकर प्रथम नरक के सिवाय शेष छ: नरकों में, ज्योतिषी-भवनवासी-व्यंतरवासी देवों में, नपुंसकों में, स्त्रियों में, स्थावर में, विकलत्रय जीवों में तथा पशुपर्याय में जन्म धारण नहीं करता है तथा तीनों लोकों और तीनों कालों में सम्यग्दर्शन के समान अन्य कोई भी सुख देने वाला नहीं है। सभी धर्मों की जड़ सम्यग्दर्शन है। बिना सम्यग्दर्शन के सब क्रियाएँ संसार के सुख तो दे सकती हैं किन्तु उनसे मोक्षसुख नहीं मिल सकता है। भाररूप एवं केवल दु:ख का ही कारण हैं।प्रश्न १७ – प्रथम सीढ़ी मुक्ती महल की बताओ, किसे कहते हैं जैन आगम में भव्यों!बिना इसके ज्ञान व चारित हैं कैसे, क्या कहते लेखक बताओ स्वयं को ?सब प्रश्नों का उत्तर बताना, मैं तो चाहू सबके ज्ञान को बढ़ाना।।१६।।
उत्तर -सम्यग्दर्शन ही मोक्षरूपी महल की प्रथम सीढ़ी है। इसके बिना ज्ञान और चारित्र सम्यक् नहीं माने जाते हैं इसलिए हे आत्महितैषी भव्य! ऐसे पवित्र सम्यग्दर्शन को धारण करो।

0 Comments