तीर्थंकर पंचकल्याणक तीर्थ व्रत विधि !! teerthankar panchakalyaanak teerth vrat vidhi !!

 तीर्थंकर पंचकल्याणक तीर्थ व्रत विधि


चौबीसों तीर्थंकर के गर्भ-जन्मकल्याणक, दीक्षाकल्याणक, केवलज्ञानकल्याणक एवं निर्वाण-कल्याणक के तेईस तीर्थ हैं। यह उन्हीं तेईस तीर्थों के व्रत करने की विधि है एवं एक चौबीसवाँ व्रत अन्य महापुरुषों की निर्वाणभूमि एवं अतिशय क्षेत्रों का समूहरूप है।

उनका स्पष्टीकरण-

१. प्रथम तीर्थ अयोध्या-प्रथम तीर्थंकर के २ कल्याणक, अजित, अभिनंदन, सुमति और अनंतनाथ के ४-४ कल्याणक हुए हैं। यह शाश्वत तीर्थ है।
२. श्रावस्ती-यहाँ संभवनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं।
३. कौशाम्बी-यहाँ पद्मप्रभुनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं, यहाँ प्रभासगिरि पर्वत पर दीक्षा एवं केवलज्ञान माने हैं यह पर्वत कौशाम्बी में ही माना है।
४. वाराणसी-सुपाश्र्वनाथ के ४ कल्याणक एवं पार्श्वनाथ के तीन कल्याणक हुए हैं।
५. चंद्रपुरी-यहाँ चन्द्रप्रभनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं।
६.काकंदी-यहाँ पुष्पदंतनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं।
७. भद्रिकावती-इसे ‘भद्दिलपुर’ भी कहते हैं यहाँ शीतलनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं।
८. सिंहपुरी-इसे सारनाथ कहते हैं, यहाँ श्रेयांसनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं।
९. चंपापुरी-यहाँ वासुपूज्य के पाँचों कल्याणक हुए हैं। यहाँ से कुछ दूर ‘मंदारगिरि’ पर्वत से मोक्ष माना है। यह पर्वत चंपापुरी के अन्तर्गत ही है। इस जन्मभूमि तीर्थ व्रत के साथ ही निर्वाणभूमि का व्रत भी हो जाता है। इसीलिए चंपापुरी को अलग से निर्वाणभूमि के व्रत में नहीं लिया है।
१०. कंपिलाजी-इसे कांपिल्यपुरी भी कहते हैं, यहाँ विमलनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं।
११. रत्नपुरी-इसे नौराही या रौनाही भी कहते हैं, यहाँ धर्मनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं।
१२. हस्तिनापुर-यहाँ भगवान शांतिनाथ, कुथुनाथ और अरनाथ के चार-चार कल्याणक हुए हैं। ये तीनों तीर्थंकर, चक्रवर्ती एवं कामदेव पद के धारक भी हुए हैं।
१३. मिथिलापुरी-यहाँ मल्लिनाथ एवं नमिनाथ के चार-चार कल्याणक हुए हैं।
१४. राजगृही-यहाँ पर श्रीमुनिसुव्रतनाथ भगवान के चार कल्याणक हुए हैं।
१५. शौरीपुर-यहाँ पर श्री नेमिनाथ के गर्भ-जन्म ये दो कल्याणक हुए हैं।
१६. कुण्डलपुर-यहाँ महावीर स्वामी के गर्भ, जन्म एवं दीक्षा ऐसे तीन कल्याणक हुए हैं।
यहाँ तक जन्मभूमियाँ हो चुकी हैं। अब दीक्षा भूमि एवं केवलज्ञान भूमि को बताते हैं।
१७. प्रयाग-यहाँ भगवान ऋषभदेव ने वटवृक्ष के नीचे दीक्षा ली थी। पुन: इसी वटवृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था। महापुराण में इसे ‘पुरिमतालपुर’ का उद्यान कहा है।
१८. अहिच्छत्र-यहाँ भगवान पाश्र्वनाथ को केवलज्ञान हुआ है। शंबर नाम के ज्योतिषी देव जो कि १०वें भव पूर्व के ‘कमठ’ नाम से जाना जाता है, उसने प्रभु पर उपसर्ग कियाथा।पुन: धरणेन्द्र देव और उनकी पद्मावती देवी ने आकर प्रभु को मस्तक पर धारण कर पुन: मस्तक पर फणा का छत्र पैâलाया था। तभी उपसर्ग दूर होते ही प्रभु को केवलज्ञान हो गया था।
१९. जृंभिकाग्राम-इसे ‘जमुई’ भी कहते हैं। यहाँ ऋजुकूला नदी के किनारे महावीर स्वामी को केवलज्ञान हुआ है। अब निर्वाणभूमि को कहते हैं-
२०. कैलाशपर्वत-इसे अष्टापद भी कहते हैं। यहाँ से श्री ऋषभदेव ने निर्वाण प्राप्त किया है। भरत-बाहुबली आदि अनेक महापुरुषों ने भी मोक्ष प्राप्त किया है।
२१. सम्मेदशिखर-यहाँ से अजितनाथ आदि बीस तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया है। यह शाश्वत तीर्थ है। २२. गिरनार पर्वत-यहाँ पर भगवान नेमिनाथ ने दीक्षा ली है। वह ‘सिरसावन’ नाम से प्रसिद्ध है। पुन: यहीं केवलज्ञान प्राप्त किया है। अनंतर यहीं से मोक्ष प्राप्त किया है। इस पर्वत के ‘ऊर्जयंतगिरि’ एवं ‘रैवतकगिरि’ नाम भी हैं। यहाँ निर्वाणस्थल पर इन्द्र ने वङ्का से चरणचिन्ह उत्कीर्ण किये थे, ऐसा वर्णन शास्त्रों में आया है।
२३. पावापुरी-यहाँ से भगवान महावीर स्वामी ने सरोवर के मध्य में स्थित शिला से मोक्ष प्राप्त किया है। यहाँ का कमल सहित सरोवर शास्त्रों में प्रसिद्ध है।
२४. मांगीतुंगी आदि सिद्धक्षेत्र तथा महावीर जी आदि अतिशय क्षेत्रों का चौबीसवां व्रत है। इस प्रकार इन चौबीस व्रतों को करना है।

व्रत विधि-

प्रत्येक व्रत में उत्तम विधि उपवास है, मध्यम विधि अल्पाहार है और जघन्य विधि एक बार शुद्ध भोजन-एकाशन है। व्रत के दिन भगवान का अभिषेक-पूजन करके पंचकल्याणक तीर्थ पूजा करना चाहिए। पुन: क्रम से एक-एक व्रत में एक-एक मंत्र की माला फेरना चाहिए। इस ‘पंचकल्याणक तीर्थ व्रत’ को करने वाले उन-उन तीर्थों की वंदना कर सैकड़ों-हजारों आदि उपवासों का फल प्राप्त करते हैं। इस जन्म में रोग, शोक, दु:ख, दारिद्रय आदि को दूर कर सुख, शांति, संपत्ति, सन्तति आदि को प्राप्त करते हैं। पुन: परम्परा से स्वर्गादि वैभव को प्राप्त करते हुए पंचकल्याणक के स्वामी तीर्थंकर पद को भी प्राप्त कर सकते हैं। इन व्रतों का फल परम्परा से निर्वाण तो निश्चित ही है। यह व्रत आप सबके लिए उत्तम फलदायी हो, यही मंगल कामना है।
तीर्थंकर पंचकल्याणक तीर्थ व्रत के चौबीस मंत्र

समुच्चय जाप्य-

ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणक-पवित्र अयोध्यादिपावापुरीपर्यंततीर्थ-क्षेत्रेभ्यो नमो नम:।

प्रत्येक व्रत के पृथक्-पृथक् मंत्र—

१. ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवतीर्थंकर-गर्भजन्म-कल्याणक-अजित-अभिनंदन-सुमति-अनन्तनाथ गर्भ-जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान कल्याणकपवित्र शाश्वत अयोध्या-तीर्थक्षेत्राय नम:।
२. ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणकपवित्र श्रावस्तीतीर्थक्षेत्राय नम:।
३. ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणकपवित्र कौशाम्बी-प्रभासगिरितीर्थक्षेत्राय नम:।
४.ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणक-पाश्र्वनाथ-गर्भजन्मदीक्षाकल्याणकपवित्र वाराणसी तीर्थक्षेत्राय नम:।
५. ॐ ह्रीं श्रीचंद्रप्रभतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणकपवित्र चन्द्रपुरीतीर्थक्षेत्राय नम:।
६. ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंतनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणकपवित्र कावंâदीतीर्थक्षेत्राय नम:।
७. ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणक-पवित्र भद्रिकावतीतीर्थक्षेत्राय नम:।
८. ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणक-पवित्र सिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय नम:।
९. ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-निर्वाणकल्याणक-पवित्र चंपापुरी-मंदारगिरि-सिद्धक्षेत्राय नम:।
१०. ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथतीर्थंकर-गर्भ-जन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणकपवित्र कंपिलापुरीतीर्थक्षेत्राय नम:।
११. ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणकपवित्र रत्नपुरीतीर्थक्षेत्राय नम:।
१२. ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरनाथ तीर्थंकरगर्भजन्म-दीक्षा-केवलज्ञान चतुश्चतु:कल्याणकपवित्र हस्तिनापुरी-तीर्थक्षेत्राय नम:।
१३. ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ-नमिनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षा-केवलज्ञानकल्याणकपवित्र मिथिलापुरीतीर्थक्षेत्राय नम:।
१४. ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञान-कल्याणकपवित्र राजगृहीतीर्थक्षेत्राय नम:।
१५. ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथतीर्थंकर-गर्भजन्मकल्याणकपवित्र शौरीपुरीतीर्थक्षेत्राय नम:।
१६. ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकर-गर्भजन्मदीक्षा-कल्याणकपवित्र कुण्डलपुरीतीर्थक्षेत्राय नम:।
१७. ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवतीर्थंकर-दीक्षाकेवलज्ञानकल्याणक-पवित्र प्रयागतीर्थक्षेत्राय नम:।
१८. ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकर-केवलज्ञानकल्याणकपवित्र अहिच्छत्रतीर्थक्षेत्राय नम:।
१९. ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकर-केवलज्ञानकल्याणक-पवित्र जृंभिकाग्रामतीर्थक्षेत्राय नम:।
२०. ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवतीर्थंकर-निर्वाणकल्याणकपवित्र कैलाश-गिरिसिद्धक्षेत्राय नम:।
२१. ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथतीर्थंकर-दीक्षा-केवलज्ञान-निर्वाण-कल्याणकपवित्र गिरनारसिद्धक्षेत्राय नम:।
२२. ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ-संभवनाथ-अभिनंदननाथ-सुमतिनाथ-पद्मप्रभु-सुपार्श्व-चंद्रप्रभ-पुष्पदंत-शीतल-श्रेयांस-विमल-अनंत-धर्म-शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरनाथ-मल्लिनाथ-मुनिसुव्रतनाथ-नमिनाथ-पार्श्वनाथ-नामविंशति-तीर्थंकर निर्वाण-कल्याणकपवित्र श्रीसम्मेदशिखर शाश्वतसिद्धक्षेत्राय नम:।
२३. ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकर-निर्वाणकल्याणकपवित्र पावापुरी-सिद्धक्षेत्राय नम:।
२४. ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि भरतक्षेत्रस्थित मांगीतुंगीपर्वतादि-सिद्धक्षेत्र-महावीरजीपद्मपुरादि-अतिशयक्षेत्रेभ्यो नम:।

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