सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
क्या तुमने कभी सोचा है की -
अंग लाश के खा जाए क्या फ़िर भी वो इंसान है ?
पेट तुम्हारा मुर्दाघर है या कोई कब्रिस्तान ?
आँखे कितना रोती हैं जब उंगली अपनी जलती है।।
सोचो उस तड़पन की हद जब जिस्म पे आरी चलती है॥
बेबसता तुम पशु की देखो बचने के आसार नही।।
जीते जी तन काटा जाए, उस पीडा का पार नही॥
खाने से पहले अशाकाहारी, चीख जीव की सुन लेते।।
शाकाहारी बन जाते तुम शाकाहारी बन जाओ !!
-द्वारा संजय जैन
सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
ये कोई शाकाहार नहीं है, इनमें चूजे पलते ||१||
इनमें नन्ही जान है जो, समझो न बेजान है वो
सुख दुःख अनुभव करते है, हम जैसे ही बढ़ते है
जीवों के दुःख को दुःख समझे, करुणा मन में जगाएं
सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
ये कोई शाकाहार नहीं है, इनमें चूजे पलते ||२||
गर्भ में बालक आता है, रूप न कुछ भी पाता है
क्या उसमें कोई जान नहीं, उसकी कोई पहचान नहीं
जान से ज्यादा सबको होते, अपने प्यारे बच्चे
सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
ये कोई शाकाहार नहीं है, इनमें चूजे पलते ||३||
एक काँटा लग जाता है, पीड़ित मन हो जाता है
आकुल व्याकुल हो जाते, काम नहीं कुछ कर पाते
फिर कैसे इनको खा लेते, आश्चर्य ये बढ़के
सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
ये कोई शाकाहार नहीं है, इनमें चूजे पलते ||४||
आज हम इनको खायेंगे, कल ये हमको सतायेंगे
जन्म जन्म का साथ है, लाख पते की बात है
बदले के इस भाव से ही, जन्म मरण हैं चलते
सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
ये कोई शाकाहार नहीं है, इनमें चूजे पलते ||५||
अण्डे में ताकत होती, मन की ये झूठी भ्रान्ति
भ्रम में जीना छोड़ दो, सत्य से नाता जोड़ लो
हमको जिससे ताकत मिलती, फल-सब्जी-अन्न होते
सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
ये कोई शाकाहार नहीं है, इनमें चूजे पलते ||६||
हाथी की ताकत देखो, घोड़े में शक्ति देखो
दाना चने का खता हैं, विश्व में जाना जाता हैं
पूरा शाकाहारी होकर, पॉवर ये दिखाये
सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
ये कोई शाकाहार नहीं है, इनमें चूजे पलते ||७||
भारत की पहचान बनो, दया धर्म की शान बनो
आज प्रतिज्ञा करते हैं, संयम पथ पर चलते है
लाख दुखों की एक दवा है, शाकाहार अपनाये
सन्डे हो या मन्डे, कोई कभी न खाये अंडे
ये कोई शाकाहार नहीं है, इनमें चूजे पलते ||८||

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