Ritual छोड़ Spiritual को पकड़ो - जैन कविता !! - Jain Poetry !!

 


Ritual छोड़ Spiritual को पकड़ो


नास्तिक हो क्या तन से मन से,
मंदिर रोज नही जाते हो?
दीप नैवेद्य में फ़र्क बताओ,
चावल नहीं चढ़ाते हो?
अर्घ्य चौबीसों रखो कंठस्थ,
पूजा कौनसी गाते हो?

प्रश्न हमसे ये होते है प्रतिदिन,
सिर हमारा चक्राता है,
पूछने वाले जरा सुन लो,
की जवाब में क्या आता है:

पूजा अर्घ्य न पूछो हमसे,
विचार पूछ लो महावीर के,
स्त्रोत शलोक न याद है हमको,
आत्मसात है भाव जिनवाणी के।

उपवास नहीं कभी किया हमने पर,
लोभ से सदा दूरी रही है।
वंदना एक ही करी शिखर की पर,
जो करी भावापूर्वक रही है।

कर्मकांड में लीन सज्जनों,
धर्म तो व्यवहार सिखाता है।
गढ़ंत से पहले मनगढ़ंत का त्याग,
यही तो धर्म सिखाता है।
भक्ति भाव का ताल्लुक है मन से,
रट्टा तो तोता भी लगाता है।
बहुत नही बहुत बार पढ़ो,
आचार्य श्री का अनुभव बताता है।
Ritual छोड़ Spiritual को पकड़ो,
जैन धर्म का यही परिचय आता है।

जय जिनेन्द्र ????

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