निर्ग्रन्थ वन्दना
त्याग तपस्या लखकर जगके,रोम खड़े हो जाते है-2।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
उपसर्गों से डिगे नहीं ,सम्मान नहीं अपनाते है।
समयसार के समता रस का,पल पल पान कराते है॥
अरघ चढ़े या असी चले पर-2,तनिक नही अकुलाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
शीत ऋतु में नदी किनारे,आतम ध्यान लगाते है।
वर्षा ऋतु में वृक्ष तले गुरु,आतम रस झलकाते है॥
ग्रीष्म काल पर्वत पर तपकर-2,चेतन स्वर्ण बनाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
एक बार आहार करें गुरु,धरती पर सो जाते है।
करवट यूं ही नहीं बदलते,पिच्छी पास लगाते है॥
करुणा विग्लित रौंम रौंम से-2,करुणा रस झलकाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
अंतराय आने पर गुरुवर,समता रस झलकाते है।
बिन भोजन पानी के गुरुवर,घंटो ज्ञान सुनाते है॥
कलयुग मे सतयुग को लखकर-2,धन्य धन्य हो जाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
धर्म ध्यान को तजकर गुरुवर;शुद्धातम में जाते है।
पुन्य पाप के फल को तजकर,शुद्धातम प्रगटाते है॥
समयसार की मूरत लखकर-2,लघुनन्दन हर्षाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
रचनाकार :- आध्यात्मिक कविहृदय लघुनन्दन जैन (बेगमगंज) सागर
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