नारी-अभिषेक - जैन कविता !! Nari Abhishek- Jain Poetry !!

 

नारी-अभिषेक - जैन कविता !! Nari Abhishek- Jain Poetry !!

                                                                  नारी-अभिषेक


 

जो नारी तीर्थंकर प्रभु ;
को अगर जनम दे सकती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...

आज काल की विडंबना से ;
नारी के अधिकार गए ...
अधिकारों के दाता प्रभु भी ;
अब तो मोक्ष सिधार गए ...
जो नारी चंदनबाला बन ;
प्रभु को पडघा सकती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...१

चौके में तो माँ बहने ही ;
भोजन शुद्ध बनाती है ...
यदि अशुद्ध है तो वो कैसे ;
काया शुद्ध बताती है ...
सम्यक्त्वी बन नारिवेद का ;
छेदन जो कर सकती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...२

व्यसनी पुरुष अभिषेक करे ;
जबकि उनकी आदत गंदी ...
फिर भी शीलवती नारी पर ;
कैसे कर दी पाबंदी ...
सफेद साडी धारण कर जो ;
महाव्रती बन सकती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...३

खुद अशुद्ध है तो वो कैसे ;
वेदी शुद्धि करती है ...
घटयात्रा में घट लेकर क्यों ;
तीर्थों का जल भरती है ...
जो नारी शची बनकर प्रभु का ;
पहला दर्शन करती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...४

हर नारियां है अशुद्ध तो ;
घटयात्रा में पुरुष चलें ...
वरना उनको उनका पूरा ;
आगमोक्त अधिकार मिले ...
जो सुवर्ण सौभाग्यवती बन ;
विधिविधान कर सकती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...५

प्राचीन ग्रंथों का प्रमाण दो ;
कोई तो मुझको आकर ...
जो मुझको झुटलादे उसका ;
बन जाऊंगा मैं चाकर ...
जो माता मरुदेवी त्रिशला ;
ऐरादेवी बनती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...६

ओ माताओं जग जाओ ;
वरना सर्वस्व गंवा दोगी ...
अभिषेक के जैसे आगे ;
दर्शन भी ना पाओगी ...
'चंद्रगुप्त' कहता जो शची बन ;
परभव मुक्ति वरती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...७

जो नारी तीर्थंकर प्रभु ;
को अगर जनम दे सकती है ...
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है ...


रचनाकार :- आचार्य श्री गुप्तिनंदीजी जी के सुयोग्य शिष्य मुनिश्री चंद्रगुप्तजी महाराज

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