जैन तीर्थंकर श्री विमलनाथ स्वामी - जीवन परिचय | Jain Tirthankar Shri Vimalnath Swami - Life Introduction |


 श्री विमलनाथ भगवान


 

विमलनाथ भगवान का परिचय

पिछलेभगवान वासुपूज्यनाथ
अगलेभगवान अनन्तनाथ
चिन्हसूकर
पिताराजा कृतवर्मा
मातारानी जयश्यामा
वंशइक्ष्वाकु
वर्णक्षत्रिय
अवगाहना60 धनुष (240 हाथ)
देहवर्णस्वर्ण सदृश
आयु6,000,000 years
वृक्षजामुन वृक्ष
पंचकल्याणक तिथियां
गर्भज्येष्ठ कृष्ण १०
कांपिल्य
जन्ममाघ शुक्ला ४
कांपिल्य
दीक्षामाघ शुक्ला ४
कांपिल्य
केवलज्ञानमाघ शुक्ला ६
कांपिल्य
मोक्षआषाढ़ कृष्ण ८
सम्मेद शिखर
समवशरण
गणधरश्रीमंदर आदि ५५
मुनिअड़सठ हजार
गणिनीआर्यिका पद्मा
आर्यिकाएक लाख तीन हजार
श्रावकदो लाख
श्राविकाचार लाख
यक्षपाताल देव
यक्षीवैरोटी देवी

परिचय

पश्चिम धातकीखंड द्वीप में मेरू पर्वत से पश्चिम की ओर सीता नदी के दक्षिण तट पर रम्यकावती नाम का एक देश है। उसके महानगर में पद्मसेन राजा राज्य करता था। किसी एक दिन राजा पद्मसेन ने प्रीतिंकर वन में स्वर्गगुप्त केवली के समीप धर्म का स्वरूप जाना और यह भी जाना कि ‘मैं तीसरे भव में तीर्थंकर होऊँगा।' उस समय उसने ऐसा उत्सव मनाया कि मानों मैं तीर्थंकर ही हो गया हूँ। अनन्तर सोलहकारण भावनाओं द्वारा तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर लिया। अन्त में सहस्रार स्वर्ग में सहस्रार इन्द्र हो गया।

गर्भ और जन्म

इसी भरत क्षेत्र के कांपिल्य नगर में भगवान ऋषभदेव का वंशज कृतवर्मा नाम का राजा राज्य करता था। जयश्यामा उसकी प्रसिद्ध महादेवी थी। उसने ज्येष्ठ कृष्ण दशमी के दिन उनका नाम ‘विमलनाथ' रखा।

 तप 
एक दिन भगवान ने हेमन्त ऋतु में बर्फ की शोभा को तत्क्षण में विलीन होते हुए देखा, जिससे उन्हें पूर्व जन्म का स्मरण हो गया। तत्क्षण ही भगवान विरक्त हो गये। तदनन्तर देवों द्वारा लाई गई ‘देवदत्ता' पालकी पर बैठकर सहेतुक वन में गये और स्वयं दीक्षित हो गये, उस दिन माघ शुक्ला चतुर्थी थी। 

केवलज्ञान और मोक्ष'
जब तपश्चर्या करते हुए तीन वर्ष बीत गये, तब भगवान दीक्षावन में जामुन वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ होकर घातिया कर्मोंका नाशकर माघ शुक्ल षष्ठी के दिन केवली हो गये। अन्त में सम्मेदशिखर पर जाकर एक माह का योग निरोध कर आठ हजार छह सौ मुनियों के साथ आषाढ़ कृष्ण अष्टमी के दिन:सिद्धपद :को प्राप्त हो गये।

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