दीक्षा - जैन कविता !! Diksha - Jain Poetry !!

दीक्षा - जैन कविता !! Diksha - Jain Poetry !!

 कमल के समान सुवासित जिसका जीवन है

प्यार से सजा जिसके आत्मा का दर्पण है
मुश्किलों में रहा सदा जिसका संगम है
माँ के जीवनकाल का करते आज हम चित्रण है।

जीवन जिसका त्यागमय, करुणा की प्याली है
सबकी चहेती हमारी प्यारी नानी है
धीर,वीर,गंभीर और गुणों से परिपूर्ण
ममता से युक्त महिमा उनकी न्यारी है।

मथानिया की पावन धरा, फौलाद है वीरो की
संयम रूपी आभूषण कीमत है आज रत्नों की
युगांत तक याद रहेगी यह वो रवानी है
महावीर के शाशन की यह अद्भत कहानी है।

पूज्य कलेजी की कोर साक्षी जी मरासा ने जब संयम को अपनाया
तब से वैराग्य इनके अंतर मन मे समाया
उपवास, चोइवार है जिनके सूत्रधार
समस्त जैन समाज की बनी आज वो पहचान।

कैसे दे विदाई आपको आंखे भर भर आती है
जन जन के मन मे एक कृति उभर आती है
सूना हुआ नाँहियाल अब नानी कहकर किसे बुलायेंगे
आपसे जुड़ा होकर कैसे हम अब रह पायेंगे।

दीक्षा के इस पावन अवसर पर करते हम आपका अभिन्नन्दन
अपनी प्यारी सी नानी को करते गुरुवर को समर्पण
तप, त्याग, की अखंड ज्योत से हो आपका संगम
मोक्ष की सीढ़ियों को छू हो कर्मो से आपका विसर्जन।

Post a Comment

0 Comments