Q. चरणानुयोग किसे कहते हैं?(What is Charananuyoga?)
A. जो सम्यग्ज्ञान मुनि श्रावकों के चरित्र की उत्पत्ति, वृद्धि आदि को बताता है वह चरणानुयोग है।
Q. चरणनुयोग के कुछ ग्रन्थों के नाम बताइये।(Name some texts of Charannuyog.)
A. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, छहढाला, मूलाचार, भगवती आराधना, अमितगति श्रावकाचार, प्रवचनसार, नियमसार, रयणसार चारित्रसार, अनगार धर्मामृत, सागर धर्मामृत, पुरूषार्थ सिद्धियुपाय।
Q. स्वाध्याय कितने प्रकार का होता है?(svaadhyaay kitane prakaar ka hota hai?)
A. आचार्याों ने स्वाध्याय के पांच भेद बताये हैं, आचार्य श्री उमास्वामीने ‘तत्वार्थ सूत्र’ में कहा है-
वाचनापृच्छनाऽनुप्रेक्षाम्नायधर्मोंपदेशाः।।25।। अ009।।
अर्थ - 1 वाचना - आत्मकल्याण के लिए निर्दोष ग्रन्थों का स्वयं पढ़ना, दूसरों को बताने अथवा पढ़ाने के लिए पढ़ाना, वाचना नामक स्वाध्याय है
2 पृच्छना - सत्पथ की ओर गमन करने के लिए, मार्ग व पदार्थों का स्वरूप निश्चय करना तथा संशय निवारणार्थ प्रश्न पूछना, पृच्छना नामक, स्वाध्याय का द्वितीय भेद है।
3 अनुप्रेक्षा - मन की स्थिरता कायम रखने के लिए, निश्चित किये हुए वस्तु स्वभाव व पदार्थ स्वरूपक ा बार-बार मनन-चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है।
4 आम्नाय - चित्त रोककर शांतिदायक पाठों को शुद्धतापूर्वक पढ़ना, याद करना, धोकना, मनन करना अम्नाय नामक स्वाध्याय है।
5 धर्मोंपदेश - सत्य की खोज करने के लिए मार्ग तथा संदेह निवृत्ति के लिए पदार्थ का स्वरूप कहना तथा श्रोताओं की सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चरित्र में प्रवृत्ति के लिए धर्मोपदेश करना, प्रवचन देना, यह कहलाता है धर्मोंपदेश, स्वाध्याय का पांचवां अंग है।
इस प्रकार स्वाध्याय पांच प्रकार का कहा गया है। मन, वचन, काय से इस स्वाध्याय में रत रहना ही खोज है आत्मा की, प्राप्ति है सुख की, बार (वारगा) है अशुभ को रोकने की।
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