असंख्यात गुणी कर्मो की निर्जरा कराने वाले, सातिशय पुण्य का संचय कराने वाले, रानी सती के अग्निकुंड को नीरकुंड करने वाले, अनादि अनिधन महामंत्र के बारे में हम कुछ जानने का प्रयास करेंगे-
णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आाइरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्वसाहूणं।
अर्थ: णमो अरिहंताणं-अरिहंतों को नमस्कार हो, णमो-सिद्धाणं-सिद्धों को नमस्कार हो. णमो आयरियाणं-आचार्यों को नमस्कार हो. णमो उवज्झायाणं- उपाध्यायों को नमस्कार हो, णमो लोए सव्व साहूणं-लोक के सभी साधुओं को नमस्कार हो.
1. मन्त्र किसे कहते हैं ?
- जिसमें अनन्त शक्ति और अनन्त अर्थ विद्यमान रहता है, उसे मन्त्र कहते हैं।
- जिसका पाठ करने मात्र से कार्य की सिद्धि होती है, उसे मन्त्र कहते हैं।
2. णमोकार मन्त्र किसे कहते हैं, यह किस भाषा एवं किस छंद में लिखा गया है?
3. इस मन्त्र में किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार क्यों नहीं किया?
4. इस णमोकार मन्त्र की रचना किसने की?
5. णमोकार मन्त्र को सर्वप्रथम किस आचार्य ने किस ग्रन्थ में लिपिबद्ध किया था?
णमोकार मन्त्र को आचार्यश्री पुष्पदन्तजी महाराज ने षट्खण्डागम ग्रन्थ के प्रथम खण्ड में मङ्गलाचरण के रूप में द्वितीय शताब्दी में लिपिबद्ध किया था।6. णमोकार मन्त्र के पर्यायवाची नाम बताइए?
1. अनादिनिधन मन्त्र | यह मन्त्र शाश्वत है, न इसका आदि है और न ही अन्त है। |
| 2. अपराजित मन्त्र | यह मन्त्र किसी से पराजित नहीं हो सकता है। |
| 3. महा मन्त्र | सभी मन्त्रों में महान् अर्थात् श्रेष्ठ है। |
4. मूल मन्त्र | सभी मन्त्रों का मूल अर्थात् जड़ है, जड़ के बिना वृक्ष नहीं रहता है, इसी प्रकार इस मन्त्र के अभाव में कोई भी मन्त्र टिक नहीं सकता है| |
| 5. मृत्युञ्जयी मन्त्र | इस मन्त्र से मृत्यु को जीत सकते हैं अर्थात् इस मन्त्र के ध्यान से मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं। |
| 6. सर्वसिद्धिदायक मन्त्र | इस मन्त्र के जपने से सभी ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त हो जाती हैं। |
| 7. तरणतारण मन्त्र | इस मन्त्र से स्वयं भी तर जाते हैं और दूसरे भी तर जाते हैं। |
| 8. आदि मन्त्र | सर्व मन्त्रों का आदि अर्थात् प्रारम्भ का मन्त्र है। |
| 9. पञ्च नमस्कार मन्त्र | इसमें पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है। |
| 10. मङ्गल मन्त्र | यह मन्त्र सभी मङ्गलों में प्रथम मङ्गल है। |
| 11. केवल ज्ञान मन्त्र | इस मन्त्र के माध्यम से केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं। |
7. णमोकार मन्त्र से कितने मन्त्रों की उत्पत्ति हुई है?
इस मन्त्र से चौरासी लाख मन्त्रों की उत्पति हुई है।8. णमोकार मन्त्र कब और कहाँ-कहाँ पढ़ना चाहिए?
दु:खे-सुखे भयस्थाने, पथि दुर्गेरणेऽपि वा।
श्री पञ्चगुरु मन्त्रस्य, पाठः कार्यः पदे—पदे ।
9. क्या अपवित्र दशा में णमोकार मन्त्र का जाप कर सकते हैं?
अपवित्रः पवित्रोऽवा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा।
ध्यायेत्पञ्चनमस्कारं, सर्वपापैः प्रमुच्यते।
10. क्या सभी जगह णमोकार मन्त्र जपने से एकसा फल मिलता है?
नहीं।गृहे जपफलं प्रोक्तं वने शतगुणं भवेत्।
पुण्यारामे तथारण्ये सहस्रगुणितं मतम्।
पर्वते दशसहस्रं च नद्यां लक्षमुदाहृतं ।
कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिनसन्निधो।
11. प्रयोग के द्वारा णमोकार मन्त्र कैसे श्रेष्ठ हुआ?
ग्वालियर में णमोकार मन्त्र का अनुष्ठान हुआ, कोटि मन्त्र का जाप हुआ, वहाँ पर णमोकार मन्त्र की श्रेष्ठता देखने के लिए दो गमलों में दो पौधे रोपे गए एक पौधे के लिए साधारण जल प्रतिदिन डाला जाता था और दूसरे पौधे पर मन्त्र से मंत्रित जल डाला जाता था। कुछ दिनों बाद देखा गया कि मंत्रों से मंत्रित जल जिस पौधे पर डाला जाता था, वह पौधा बड़ी तेजी से विकसित हो रहा था तथा जिसमें सामान्य जल डाला जा रहा था, उसके बढ़ने की स्थिति बहुत कम थी।12. णमोकार मन्त्र में कितने पद, अक्षर, मात्राएँ, व्यञ्जन एवं स्वर होते हैं?
जैसे-णमो अरिहंताण में, ण, मो, रि, ह, ता, ण = 6 इसी प्रकार आगे भी।
(2) 35 अक्षर किन्तु स्वर 34 हैं। मन्त्र शास्त्र के अनुसार णमो अरिहंताण पद में अ का लोप हो जाता है।
जैसे-णमो अरिहंताण में, ण, मो, रि, ह, ता, ण = 6 इसी प्रकार आगे भी।
(2) 35 अक्षर किन्तु स्वर 34 हैं। मन्त्र शास्त्र के अनुसार णमो अरिहंताण पद में अ का लोप हो जाता है।
मात्रा गिनना – । = एक (लघु) ऽ = दो (गुरु)
नोट- प्राकृत भाषा में ए, ऐ, ओ, औ, हृस्व, दीर्घ एवं प्लुत तीनों भेद होते हैं। (ध.पु. 13/247)
अत: लोए में ए को हृस्व मानने से 58 मात्राएँ होंगी।
13. परमेष्ठियों के वाचक मन्त्र कितने-कितने अक्षर वाले हैं?
पणतीस सोल छप्पण चदुदुगमेगं च जवहज्झाएह।
परमेट्टिवाचयाण अण्ण च गुरूवएसेण।
"अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः" या "अरिहन्त सिद्ध आइरियाउवज्झाया साधु"।
5 अक्षर वाला मन्त्र-
असिआउसा और नमः सिद्धेभ्यः ।
4 अक्षर वाला मन्त्र-
अरिहन्त और असिसाहू।
2 अक्षर वाला मन्त्र-
सिद्ध और अह।
1 अक्षर वाला मन्त्र-
अ, ओम, र्ह्रं, श्रीं और ह्रीं ।
14. ‘ओम शब्द में पञ्च परमेष्ठी किस प्रकार गर्भित हो जाते हैं?
अरहंता असरीरा आइरिया तह उवज्झया मुणिणो।
पढमक्खरणिप्पणो ओोंकारो पञ्च परमेट्टी।
15. णमोकार मन्त्र 9 बार या 108 बार क्यों जपते हैं?
9 का अङ्क शाश्वत है, उसमें कितनी भी संख्या का गुणा करें और गुणनफल को आपस में जोड़ने से 9 ही रहता है। जैसे 9x3=27 (2+7=9) अतः शाश्वत पद पाने के लिए 9 बार पढ़ा जाता है। कर्मो का आस्रव 108 द्वारों से होता है, उसको रोकने हेतु 108 बार णमोकार मन्त्र जपते हैं। प्रायश्चित में 27 या 108 श्वासोच्छवास के विकल्प में 9 बार या 36 बार णमोकार मन्त्र पढ़ सकते हैं।16. णमोकार मन्त्र को श्वासोच्छवास में किस प्रकार पढ़ते हैं?
णमोकार मन्त्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ते हैं। श्वास ग्रहण करते समय णमो अरिहंताण, श्वास छोड़ते समय णमो सिद्धाणं, पुनः श्वासग्रहण करते समय णमो आइरियाणं, श्वास छोड़ते समय णमो उवज्झायाणं और अन्त में पुनः श्वास लेते समय णमो लोए एवं श्वास छोड़ते समयसव्वसाहूर्ण बोलना चाहिए।17. जाप करने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
जाप करने की तीन विधियाँ हैं- कमल जाप, हस्ताङ्गली जाप और माला जाप।1.कमल जाप विधि :-
2. हस्ताङ्गली जाप विधि :-
3. माला जाप :-
18. मन्त्रोच्चारण जाप एवं ध्यान किस दिशा में करना चाहिए?
मन्त्रोच्चारण जाप एवं ध्यान के लिए पूर्व एवं उत्तरमुख होने को शुभ बताया है क्योंकि प्रत्येक दिशा का अलग-अलग फल है।दक्षिण - प्रज्ञान्तक (प्रज्ञा अर्थात् बुद्धि का नाश करने वाली है।)
पश्चिम - पदमान्तक (हृदय की भावनाओं को नष्ट करने वाली है।)
उत्तर - विध्नान्तक (विध्नों का नाश करने वाली है।)
19. आचार्यों ने उच्चारण के आधार पर मन्त्र जाप कितने प्रकार से कहा है?
चतुर्विधा हि वाग्वैखरी मध्यमा पश्यन्ती सूक्ष्माश्चेति । (त.अ.पृ.66)20. णमोकार मन्त्र व्रत के कितने उपवास किए जाते हैं?
णमोकार मन्त्र व्रत के 35 उपवास किए जाते हैं।21. इस व्रत में कौन-कौन सी तिथि में कितने-कितने उपवास किए जाते हैं?
इस व्रत में पञ्चमी के 5 , सप्तमी के 7, नवमी के 9 तथा चौदस के 14 उपवास किए जाते हैं।22. यह व्रत कब प्रारम्भ किया जाता है?
आषाढ़ शुक्ल सप्तमी से या किसी भी माह की पञ्चमी, सप्तमी, नवमी या चौदस से प्रारम्भ किया जाता है।23. इस मन्त्र का क्या प्रभाव है?
एसो पञ्च णमोयारो सव्वपावप्पणासणो ।
मङ्गलाणं च सव्वेसिं पढमं होई मङ्गलं ।
मङ्गल शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है।- मङ्ग = सुख। ल = लाति, ददाति, जो सुख को देता है, उसे मङ्गल कहते हैं।
- मङ्गल-मम् = पापं । गल = गालयतीति = अर्थात् जो पापों का गलाता है नाश करता हैं, उसे मङ्गल कहते हैं।
पारलौकिक मङ्गल में - अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु परमेष्ठी शुभ हैं।
24. णमोकार मन्त्र की क्या महिमा है?
यह मन्त्र सभी मन्त्रों का राजा माना जाता है, इसके स्मरण से पूर्वोपार्जित कर्म नष्ट हो जाते हैं, जिससे अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं। सिंह, सर्प आदि भयंकर जीवों का भय नहीं रहता है। भूत, व्यंतर आदि भाग जाते हैं। हलाहल विष भी अपना असर त्याग देता है। इस मन्त्र के सुनने मात्र से अनेक जीवों ने उच्च गति एवं विद्याओं को प्राप्त किया था। जिसके अनेक उदाहरण शास्त्रों में आते हैं। जैसे-- पद्मरुचि सेठ ने बैल को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह सुग्रीव हुआ था। विशेष-बैल पहले राजा वृषभध्वज बना बाद में सुग्रीव तथा पद्यरुचि रामचन्द्र जी हुए।
- रामचन्द्र जी ने जटायु पक्षी को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह स्वर्ग में देव हुआ था।
- जीवन्धर कुमार ने कुत्ते को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह यक्षेन्द्र हुआ।
- अञ्जनचोर ने णमोकार मन्त्र पर श्रद्धा रखकर आकाशगामी विद्या को प्राप्त किया।

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