Q. तीर्थंकर किसे कहते हैं?(Who are called Tirthankaras?)
A. 1. "तरंति संसार महार्णवं येन तत्तीर्थम्" अर्थात् जिसके द्वारा संसार सागर से पार होते हैं, वह तीर्थ है और इसी तीर्थ के प्रवर्तक तीर्थंकर कहलाते हैं।
2. धर्म का अर्थ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र है। चूंकि इनके द्वारा संसार सागर से तरते हैं,इसलिए इन्हें तीर्थ कहा है और जो तीर्थ (धर्म) का उपदेश देते हैं, वे तीर्थंकर कहलाते हैं।
Q. तीर्थंकर कितने होते हैं?(How many Tirthankaras are there?)
A. वैसे तीर्थंकर तो अनन्त हो चुके, किन्तु भरत और ऐरावत क्षेत्र में अवसर्पिणी के चतुर्थ काल में एवं उत्सर्पिणी के तृतीय काल में (दु:षमा-सुषमा) क्रमश: एक के बाद एक चौबीस तीर्थंकर होते हैं।
Q. चौबीस तीर्थंकर के चिह्न सहित नाम बताइए?(Name the 24 Tirthankaras with their symbols?)
A. 1. भगवान ऋषभदेव ( बैल ) 2. अजितनाथ( हाथी ) 3. सम्भवनाथ ( घोड़ा ) 4. अभिनन्दननाथ ( बन्दर ) 5. सुमतिनाथ ( चकवा ) 6. पद्मप्रभु ( कमल ) 7. सुपार्श्वनाथ ( स्वस्तिक ) 8. चन्द्रप्रभु ( चन्द्रमा ) 9. पुष्पदन्त ( मगरमच्छ ) 10. शीतलनाथ ( कल्पवृक्ष ) 11. श्रेयान्सनाथ ( गैंडा ) 12. वासुपुज्य ( भैंसा ) 13. विमलनाथ ( सूअर ) 14. अनन्तनाथ ( सेही ) 15. धर्मनाथ ( वज्रदण्ड ) 16. शांतिनाथ ( हिरण ) 17. कुन्थुनाथ ( बकरा ) 18. अरहनाथ ( मछली ) 19. मल्लिनाथ ( कलश ) 20. मुनिसुव्रतनाथ ( कछुआ ) 21. नमिनाथ ( नीलकमल ) 22. नेमिनाथ ( शंख ) 23. पारसनाथ ( सर्प ) 24. महावीर ( सिंह )|
Q. विदेहक्षेत्र में कितने तीर्थंकर होते हैं?(How many Tirthankaras are there in Videha Kshetra?)
A. विदेह क्षेत्र में 20 तीर्थंकर तो विद्यमान रहते ही हैं, किन्तु 5 विदेह में अधिक से अधिक 160 हो सकते हैं।
Q. अढ़ाईद्वीप में एक साथ अधिक-से-अधिक कितने तीर्थंकर हो सकते हैं?(How many Tirthankaras can there be at the same time in Adhaidweep?)
A. अढ़ाईद्वीप में एक साथ अधिक से अधिक 170 (विदेह में 160, भरत में 5, ऐरावत में 5) तीर्थंकर हो सकते हैं।
Q. क्या कभी एक साथ 170 तीर्थंकर हुए थे?(Were there ever 170 Tirthankaras together?)
A. अजितनाथ तीर्थंकर के समय एक साथ 170 तीर्थंकर हुए थे।
Q. तीर्थंकरों के कितने कल्याणक होते हैं?(teerthankaron ke kitane kalyaanak hote hain?)
A. तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक होते हैं। गर्भ, जन्म, दीक्षा या तप, ज्ञान और मोक्ष कल्याणक।
Q. क्या भरत, ऐरावत एवं विदेह सभी जगह पाँच कल्याणक वाले तीर्थंकर होते हैं?(kya bharat, airaavat evan videh sabhee jagah paanch kalyaanak vaale teerthankar hote hain?)
A. नहीं। भरत, ऐरावत में पाँच कल्याणक वाले ही तीर्थंकर होते हैं। किन्तु विदेह क्षेत्र में 2, 3 और 5 कल्याणक वाले भी होते हैं। दो में ज्ञान और मोक्ष कल्याणक, तीन में दीक्षा, ज्ञान और मोक्ष कल्याणक होते हैं।
Q. तीर्थंकर की कौन-कौन सी विशेषताएँ होती हैं?(teerthankar kee kaun-kaun see visheshataen hotee hain?)
A. तीर्थंकरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं:-
2. तीर्थंकर बालक माता का दूध नहीं पीते किन्तु सौधर्म इन्द्र जन्माभिषेक के बाद उनके दाहिने हाथ के आँगूठे में अमृत भर देता है जिसे चूसकर बड़े होते हैं।
3. जीवन भर (दीक्षा के पूर्व) देवों के द्वारा दिया गया ही भोजन एवं वस्त्राभूषण ग्रहण करते हैं।
4. तीर्थंकर स्वयं दीक्षा लेते हैं।
5. तीर्थंकर को बालक अवस्था में, गृहस्थ अवस्था में एवं मुनि अवस्था में भी मन्दिर जाना आवश्यक नहीं होता। उनका अन्य मुनि से, गृहस्थ अवस्था में साक्षात्कार भी नहीं होता।
6. तीर्थंकरों के कल्याणकों के समय पर नारकी जीवों को भी कुछ क्षण के लिए आनन्दकी अनुभूति होती है।
7. तीर्थंकर मात्र सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार करते हैं। अतः नमःसिद्धेभ्यः बोलते हैं।
8. तीर्थंकरों के 46 मूलगुण होते हैं।
Q. तीर्थंकर के चिह्न कौन रखता है?(teerthankar ke chihn kaun rakhata hai?)
A. जब सौधर्म इन्द्र तीर्थंकर बालक का पाण्डुकशिला पर जन्माभिषेक करता है। उस समय तीर्थंकर के दाहिने पैर के अँगूठे पर जो चिह्न दिखता है, वह इन्द्र उन्हीं तीर्थंकर का वह चिह्न निश्चित कर देता है।
Q. कौन से क्षेत्र के तीर्थंकर का कौन-सी शिला पर जन्माभिषेक होता है?(kaun se kshetr ke teerthankar ka kaun-see shila par janmaabhishek hota hai?)
A. भरत क्षेत्र के तीर्थंकरों का पाण्डुकशिला पर, पश्चिम विदेह के तीर्थंकरों का पाण्डु कम्बला शिला पर, ऐरावत क्षेत्र के तीर्थंकरों का रक्त शिला एवं पूर्व विदेह के तीर्थंकरों का रक्त कम्बला शिला पर जन्माभिषेक होता है।
Q. कौन से तीर्थंकरों के शरीर का वर्ण कौन-सा था ?(kaun se kshetr ke teerthankar ka kaun-see shila par janmaabhishek hota hai?)
A. "दो गोरे दो सांवरे, दो हरियल दो लाल। सोलह कंचन वरण हैं, तिन्हें नवाऊँ भाल।"
अर्थ – चन्द्रप्रभ एवं पुष्पदन्त (सफेद वर्ण) मुनिसुव्रतनाथ एवं नेमिनाथ (श्याम वर्ण / नील वर्ण) पद्मप्रभ एवं वासुपूज्य (लाल वर्ण) सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ (हरित वर्ण) शेष सोलह तीर्थंकरों का (पीत वर्ण)
Q. कौन से तीर्थंकर कहाँ से मोक्ष पधारे?(kaun se teerthankar kahaan se moksh padhaare?)
A. ऋषभदेव कैलाश पर्वत से, वासुपूज्य चम्पापुर से, नेमिनाथ गिरनार से, महावीर स्वामी पावापुर से एवं शेष तीर्थंकर तीर्थराज सम्मेदशिखर जी से मोक्ष पधारे।
Q. अ वर्ण से प्रारम्भ होने वाले तीर्थंकरों नाम बताइए?(What are the names of Tirthankaras starting with letter A?)
A. आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, अनन्तनाथ, अरनाथ एवं अतिवीर।
Q. व वर्ण से प्रारम्भ होने वाले तीर्थंकरों नाम बताइए?(What are the names of Tirthankaras starting with letter V?)
A. वृषभनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ और वर्द्धमान।
Q. श, स से प्रारम्भ होने वाले तीर्थंकरों के नाम बताइए?(What are the names of Tirthankaras starting with letter Sha, Sa?)
A. सम्भवनाथ,सुमतिनाथ,सुपार्श्वनाथ,सुविधिनाथ,शीतलनाथ,श्रेयांसनाथ,शान्तिनाथ एवं सन्मति |
Q. कितने तीर्थंकरों के चिह्न एकेन्द्रिय हैं ?(kitane teerthankaron ke chihn ekendriy hain ?)
A. 3. पद्मप्रभाका लालकमल, चन्द्रप्रभाका चन्द्रमा और नमिनाथका नीलकमल ( कहीं पर कल्पवृक्ष को भी ले लिया जाता है किंतु वह पृथ्वीकाय होता है अर्थात उसमें सामान्य वृक्षों की तरह वनस्पतिकायिक जीव नहीं होता)|
Q. कितने तीर्थंकरों के चिह्न अजीव हैं?(kitane teerthankaron ke chihn ajeev hain?)
A. 3 - स्वस्तिक, वज़दण्ड और कलश।
Q. कितने तीर्थंकरों के चिह्न पञ्चेन्द्रिय हैं?(kitane teerthankaron ke chihn panchendriy hain?)
A. शेष 16 तीर्थंकरों के चिह्न पञ्चेन्द्रिय हैं।
Q. उन तीर्थंकरों के चिह्न बताइए जो बोझा ढोने वाले पशु हैं?(un teerthankaron ke chihn bataie jo bojha dhone vaale pashu hain?)
A. वे चार तीर्थंकरों के चिह्न हैं- बैल, हाथी, घोड़ा और भैंसा।
Q. उन तीर्थंकरों के चिह्न बताइए जो जल में रहते हैं?(un teerthankaron ke chihn bataie jo jal mein rahate hain?)
A. जल में रहने वाले - लालकमल, मगर, मछली, कछुआ, नीलकमल, शंख और सर्प चिह्न हैं।
Q. एक तीर्थंकर के उस चिह्नको बताइए जिसके शरीर में काँटे होते हैं?(ek teerthankar ke us chihnako bataie jisake shareer mein kaante hote hain?)
A. सेही के शरीर में काँटे होते हैं।
Q. चौबीस तीर्थंकरों के चिह्न में सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी कौन-सा है?(chaubees teerthankaron ke chihn mein sabase tej daudane vaala praanee kaun-sa hai?)
A. हिरण सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी है।
Q. ऐसे कितने तीर्थंकर हैं, जिनके नाम जिस वर्ण (अक्षर) से प्रारम्भ होते हैं, उसी वर्ण से चिह्न प्रारम्भ होता है ?(How many Tirthankaras are there, whose name starts with the same letter, the symbol starts with the same letter?)
A. वृषभनाथ का वृषभ, सुपार्श्वनाथ का स्वस्तिक, चन्द्रप्रभ का चन्द्रमा, नमिनाथ का नीलकमल और सन्मति का सिंह।
Q. कितने तीर्थंकरों की बारात निकली थी ?(kitane teerthankaron kee baaraat nikalee thee ?)
A. बीस तीर्थंकरों।
Q. तीर्थंकरों सामान्य अरिहंतों में क्या अंतर है?(What is the difference between Tirthankaras and normal Arihants?)
A. 1.तीर्थंकरों के कल्याणक होते हैं, सामान्य अरिहंतों के नहीं। 2. तीर्थंकरों के चिह्न होते हैं, सामान्य अरिहंतों के नहीं। 3. तीर्थंकरों का समवसरण होता है, सामान्य अरिहंतों के नहीं।उनकी गंधकुटी होती है। 4. तीर्थंकरों के गणधर होते हैं, सामान्य अरिहंतों के नहीं। 5. तीर्थंकरों को जन्म से ही अवधिज्ञान होता है, सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है। 6. तीर्थंकरों को दीक्षा लेते ही मनः पर्ययज्ञान होता है, सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है। 7. तीर्थंकर अपनी माता की अकेली संतान होते हैं, सामान्य अरिहंतों के अनेक भाई-बहिन हो सकते हैं। 8. तीर्थंकर जब तक गृहस्थ अवस्था में रहते हैं तब तक उनके परिवार में किसी का मरण नहीं होता है, किन्तु सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है। 9. भाव पुरुषवेद वाले ही तीर्थंकर बनते हैं, किन्तु सामान्य अरिहंत तीनों भाववेद वाले बन सकते हैं। 10. तीर्थंकरों के समचतुरस संस्थान ही होता है, किन्तु सामान्य अरिहंतों के छ: संस्थानों में से कोई भी हो सकता है | 11. तीर्थंकरों के प्रशस्त विहायोगतिका ही उदय रहता, किन्तु सामान्य अरिहंतों के दोनों में से कोई भी हो सकता है। 12. तीर्थंकरों के सुस्वर नाम कर्म का ही उदय रहेगा, सामान्य अरिहंतों के दोनों में से कोई भी हो सकता है। 13. चौथे नरक से आने वाले तीर्थंकर नहीं बन सकते किन्तु सामान्य अरिहंत बन सकते हैं। 14. तीर्थंकरों की माता को सोलह स्वप्न आते हैं, सामान्य अरिहंतों के लिए यह नियम नहीं है। 15. तीर्थंकरों के श्रीवत्स का चिह्न नियम से रहता है, सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है। 16.तीर्थंकरों की दिव्य ध्वनि नियम से खिरती है, सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है। जैसे - मूक केवली की नहीं खिरती है।
Q. किन तीर्थंकर के साथ कितने राजाओं ने दीक्षा ली थी ?(kin teerthankar ke saath kitane raajaon ne deeksha lee thee ?)
A. ऋषभदेव के साथ 4000 राजाओं ने, वासुपूज्य के साथ 676 राजाओं ने, मल्लिनाथ एवं पार्श्वनाथ के साथ 300-300 राजाओं ने, भगवान् महावीर ने अकेले एवं शेष तीर्थंकरों के साथ 1000-1000 राजाओं ने दीक्षा ली थी। (ति.प.,4/675-76)
Q. कौन से तीर्थंकर ने कौन सी वस्तु से प्रथम पारणा की थी?(kaun se teerthankar ne kaun see vastu se pratham paarana kee thee?)
A. ऋषभदेव ने इक्षुरस से एवं शेष सभी तीर्थंकरों ने क्षीरान्न अर्थात् दूध व अन्न से बने अनेक व्यञ्जनों की खीर आदि से पारणा की थी।
Q. कौन से तीर्थंकर किस आसन से मोक्ष पधारे ?(kis teerthankar ko kis aasan se moksh kee praapti huee?)
A. वृषभनाथ, वासुपूज्य और नेमिनाथ (1, 12, 22) तो पद्मासन से एवं शेष सभी तीर्थंकर कायोत्सर्गासन (खड्गासन) से मोक्ष पधारे थे, किन्तु समवसरण में सभी तीर्थंकर पद्मासन से ही विराजमान होते हैं।
Q. कौन से तीर्थंकर के समवसरण का कितना विस्तार था ?(kaun se teerthankar ke samavasaran ka kitana vistaar tha ?)
A. वृषभदेव का 12 योजन एवं आगे-आगे नेमिनाथ तक प्रत्येक तीर्थंकर में / योजन घटाते जाना है एवं पार्श्वनाथ एवं महावीर में / योजन, / योजन घटाना है। तब पार्श्वनाथ का 1.25 योजन एवं महावीर स्वामी का 1 योजन का था। (ति.प.4–724-25)
नोट- 4 कोस = 1 योजन, 2 मील = 1 कोस एवं 1.5 किलोमीटर का 1 मील अर्थात् 1 योजन में 12 किलोमीटर होते हैं।
Q. किन तीर्थंकर ने योग निरोध करने के लिए कितने दिन पहले समवसरण छोड़ा था ?(kin teerthankar ne yog nirodh karane ke lie kitane din pahale samavasaran chhoda tha ?)
A. ऋषभदेव ने 14 दिन पहले, महावीर स्वामी ने 2 दिन पहले एवं शेष सभी तीर्थंकरो ने 1 माह पहले योग निरोध करने के लिए समवसरण छोड़ दिया था।
Q. सबसे कम समय में कौन से तीर्थंकर को केवलज्ञान हुआ था ?(Which Tirthankara attained Kevalgyan in the shortest possible time?)
A. मल्लिनाथ को मात्र 6 दिनों में केवलज्ञान हुआ था।
Q. कौन से तीर्थंकर को सबसे अधिक दिनों में केवलज्ञान हुआ था ?(Which Tirthankara attained Kevalgyan in maximum number of days?)
A. ऋषभदेव को 1000 वर्ष में केवलज्ञान हुआ था।
Q. सबसे कम गणधर कौन से तीर्थंकर के थे ?(Which Tirthankara had the least number of Gandharas?)
A. सबसे कम मात्र 10 गणधर पार्श्वनाथ तीर्थंकर के थे।
Q. सबसे अधिक गणधर कौन से तीर्थंकर के थे?(Which Tirthankara had the maximum number of Gandharas?)
A. सबसे अधिक 116 गणधर सुमतिनाथ तीर्थंकर के थे।
Q. सभी तीर्थंकर के कुल कितने गणधर थे?(How many Gandharas were there in all the Tirthankaras?)
A. सभी तीर्थंकर के कुल 1452 गणधर थे।
Q. तीर्थंकर के सहस्रनामों से स्तुति किसने कहाँ पर की थी ?(Who and where was the Tirthankar praised with thousands of names?)
A. सौधर्म इन्द्र ने तीर्थंकर की स्तुति केवलज्ञान होने के बाद समवसरण में की थी।
Q. पाँच बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर के नाम कौन-कौन से हैं?(paanch baal brahmachaaree teerthankar ke naam kaun-kaun se hain?)
A. वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर।
Q. तीन पदवियों से विभूषित तीर्थंकर के नाम?(teen padaviyon se vibhooshit teerthankar ke naam?)
A. शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ। ये तीनों तीर्थंकर, चक्रवर्ती एवं कामदेव तीनों पदों के धारक थे।
Q. किन तीर्थंकर पर मुनि अवस्था में उपसर्ग हुआ था ?(kin teerthankar par muni avastha mein upasarg hua tha )
A. सुपार्श्वनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर।
Q. जिसने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया वह जीव किस भव में मोक्ष चला जाएगा ?(jisane teerthankar prakrti ka bandh kiya vah jeev kis bhav mein moksh chala jaega ?)
A. दो, तीन कल्याणक वाले उसी भव से एवं पाँच कल्याणक वाले तीसरे भव से मोक्ष चले जाएंगे। इतना विशेष है कि २-३ कल्याणक वाले तीर्थंकर मात्र विदेह क्षेत्र में होते हैं |
Q. तीर्थंकर प्रकृति का बंध कौन कहाँ करता है?(teerthankar prakrti ka bandh kaun kahaan karata hai?)
A. कर्मभूमि का मनुष्य केवली, श्रुतकेवली के पादमूल में सोलहकारण भावना तथा विश्व कल्याण की भावना भाता हुआ तीर्थंकर प्रकृति का बंध करता है।
Q. तीर्थंकर चौबीस ही क्यों होते हैं?(Why are there only twenty four Tirthankaras?)
A. आचार्य सोमदेव से जब यह प्रश्न किया गया तब उनका उत्तर था ‘इस मान्यता में कोई अलौकिकता नहीं है, क्योंकि लोक में अनेक ऐसे पदार्थ हैं जैसे-ग्रह, नक्षत्र, राशि, तिथियाँ और तारागण जिनकी संख्या काल योग से नियत है।” तीर्थंकर सर्वोत्कृष्ट होते हैं। अत: उनके जन्मकाल योग भी विशिष्ट उत्कृष्ट ही होना चाहिए या होते हैं। ज्योतिषाचार्यों का (जिनमें स्व.डॉ.नेमीचन्द आरा भी थे) मत है कि प्रत्येक कल्पकाल के दु:षमासुषमा काल में ऐसे उत्तम काल योग 24 ही पड़ते हैं, जिनमें तीर्थंकर का जन्म होता है या हो सकता है। विष्णु के भी अवतार 24 ही हैं, बौद्धों ने भी 24 बुद्ध और ईसाइयों ने भी 24 ही पुरखे स्वीकार किए हैं। ये एक पक्ष हुआ| दूसरा आचार्य भगवन कहते है " स्वभाव तर्क का विषय नहीं होता |" अन्यथा प्रश्न ये भी हो सकता है - 'मनुष्य के ३२ ही दाँत क्यों होते है ?' अथवा ' अग्नि गरम ही क्यों होती है?' इत्यादि|
Q. तीस चौबीसी के 720 तीर्थंकर कैसे कहे जाते हैं?(How are the 720 Tirthankaras of Tis Chaubisi called?)
A. अढ़ाई द्वीप में 5 भरत क्षेत्र और 5 ऐरावत क्षेत्र = कुल 10 क्षेत्र हैं। इनमें प्रत्येक क्षेत्र में तीनों कालों के 72 तीर्थंकर होते हैं। अत: 10 क्षेत्रों के तीनों काल सम्बन्धी 720 तीर्थंकर कहे जाते हैं।
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