हिन्दू मुस्लिमों का पशु प्रेम एवं बलि विरोध
बलि का बकरा फूलों की माला पहने, माथे पर टीका लगाये जुलूस में सबसे आगे चल रहा था। बिहार के चम्पारन जिले में इस बकरे के बलिदान की विधि शुरु हो उसके पहले ही महात्मा गांधी लोगों के सामने आ गये।
देवी के भोग पर चर्चा हुई तो महात्मा गांधी अपना भोग अपनी बलि चढ़ाने को तैयार हो गये। बापू बोले — गूंगे और निर्दोष प्राणी के खून से क्या देवी प्रसन्न होती है? किसी निर्दोष प्राणी की बलि चढ़ाना पुण्य नहीं पाप है,अधर्म है। इस बकरे को छोड़ दीजिए। इसकी मुक्ति से देवी आज जितनी प्रसन्न होगी, उतनी पहले कभी नहीं हुई होगी।
आत्मा की आवाज ने ग्रामवासियों को जगा दिया। लोगों ने बकरे को छोड़ दिया और गाँव भर में प्रेम के दिये जगमगा उठे।
एक बकरे को बचाने के इस पावन प्रसंग के प्रचार को १९५६ में तत्कालीन केन्द्रीय सरकार ने प्रोत्साहित किया था। इसी तारातम्य में बलि के विरूद्ध आवाज उठाने का एक अच्छा अवसर आया है। २८ एवं २९ नवम्बर २०१४ को नेपाल के गधिमाई मेले में दो से पाँच लाख पशुओं का कत्ल होने वाला है। मुख्यत: नर भैंसे मारे जायेंगे, लेकिन बकरी, बतख, मुर्गें, कबूतर, चूहे भी क्रूरतापूर्वक मारे जाते हैं। देवी गधिमाई के नाम पर पूरे ४८ घंटे चलने वाले धरती के सबसे बड़े पशु हत्याकांड में शामिल लोगों में से ७० प्रतिशत भारतीय होते हैं।
बुद्ध और महावीर ने भारतीय संस्कृति में आ गई हिंसक विकृतियों को दूर कर धार्मिक हिंसा को हटा दिया था। हालांकि मूल वैदिक संस्कृति भी प्रकृति और अहिंसा प्रेम में पगी हुई थी। वास्तव में पूरा हिन्दूस्तानी भारतीय हिन्दू दर्शन पशु प्रेम से भरा पड़ा है।चंद स्वार्थी लोगों ने बलि का विधानकर पुण्य भूमि को पतित कर दिया। लगभग यही कहानी इस्लाम एवं अन्य धर्मों की दिखती है। प्राचीन धर्मग्रन्थों से जान कर हम सभी हिन्दू—मुस्लिम द्वारा पशु बलि को रोक करके लाखों पशुओं को अभयदान देना ही चाहिये।
असम में दुर्गा पूजा के दौरान मां कामाख्या समेत कई मंदिरों में अभी भी मूक प्राणियों की बलि दी जाती है। वहाँ पर इसका विरोध भी बढ़ रहा है।असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई पूजा के नाम पर बलि विधान के घोर विरोधी हैं। देश के सर्वश्रेष्ठ साहित्य पुरस्कारों से सम्मानित लेखिका डॉ. इन्दिरा गोस्वामी ने बलि का विरोध करते हुये ‘छिन्नमस्ता’ उपन्यास लिखा। अपने वक्तव्य के समर्थन में लेखिका ने कालिका पुराण आदि शास्त्रों के अंशों को भी उद्धृत किया है। लेखिका लिखती हैं— माँ छिन्नमस्ता, माँ तुम रक्त वस्त्र उतार दो।
हिन्दू संस्कृति ग्रन्थों में यज्ञ—
पं. श्रीराम शर्मा ने पशुबलि को हिन्दु संस्कृति एवं विश्व मानवता पर एक कलंक मानते हुये विभिन्न धर्मग्रन्थों के माध्यम से विस्तृत विवेचना दिया है। शर्माजी लिखते हैं— मांसाहार, मद्यपान और व्यभिचार यह तीन पाप हमारे यहाँ बहुत बड़े माने गये हैं। लोग अपनी आसुरी वृत्तियों से प्रेरित होकर इन्हें करते हैं पर इसके लिए समाज में उनकी निंदा होती है और अंतरात्मा भी धिक्कारती है। इन दोनों ही विरोधों से बचने के लिए मांसाहार को पशुबलि के बहाने उचित ठहराने का किन्हीं ने निन्दनीय प्रयास किया होगा। खेद है कि उन्हें सफलता भी मिली और पिछले दिनों यह पाप प्रचंड रूप से पल्लवित हुआ।
भागवत ४/२५/७—८ में नारद कहते हैं हे राजन तेरे यज्ञ में सहस्त्रों पशु, निर्दयतापूर्वक मारे गए। वे तेरी क्रूरता को याद करते हुए क्रोध में भरे हुए तीक्ष्ण हथियारों से तुझे काटने को बैठे हैं।
भागवत स्कन्ध— ११ अध्याय २१ के श्लोक ३० में आया है कि — जो मनुष्य श्राद्ध और यज्ञ में पशुबलि करते हैं वास्तव में वह माँस के लोभ से ऐसा करते हैं और निश्चय रूप से छल और कपट करने वाले होते हैं।
भागवत ३/३/७ में लिखा है—हे अकलंक, सर्व वेद, यज्ञ, तप, दान उस मनुष्य के पुण्य के सामने अंशमात्र भी नहीं है जो जीवों को अभयदान प्रदान करके रक्षा करते हैं।’
मनुस्मृति ५/५१ के अनुसार—‘ पशुवध के लिए सम्मति देने वाला, माँस को काटने, पशु आदि के मारने, उनको मारने के लिए लेने और बेचने, माँस को पकाने, परोसने और खाने वाले, यह आठ मनुष्य घातक है।’
उपनिषद का वचन है—‘ काम, क्रोध लोभादय: पशव:’ काम, क्रोध, लोभ, मोह यह पशु हैं, इन्हीं को मारकर यज्ञ में हवन करना चाहिए।
महाभारत शान्तिपर्व अ.२६५ में कहा गया है, सुरा मत्स्य, शराब,माँस, आस्रव आदि सब व्यवहार धूर्तों का चलाया हुआ है। उसका वेदों में कोई प्रमाण नहीं हैं। मान, मोह, लोभ और जिव्हा की लोलपुता के कारण यह बनाया गया है।
महाभारत के अश्वमेघ पर्व अ.६१, श्लोक १३,१४ के अनुसार पशु बलि के बाँधने के खूँटे को गाड़ कर, पशुओं को मारकर, खून खच्चर मचा कर स्वर्ग चला जाएगा तो नरक कौन जाएगा ?
वेदमूर्ति पं. श्री रामशर्मा लिखते हैं— जगदम्बा माता भवानी के पवित्र नाम पर जब पशु बलि होती हैं तो देवत्व की आत्मा कांपने लगती है। बेचारे निरीह बकरे— भैंसे माता के आगे निर्दयता पूर्वक कत्ल किये जाते हैं और उनका रक्त—माँस माता को खिलाने के लिये उपस्थित किया जाता है, यह कितना नृशंस कार्य है—
पशु बलि कुछ लोग करें और शेष लोग चुपचाप देखें। उसके विरुद्ध न कुछ कहें न कुछ करें यह सब प्रकार से अशोभनीय हैं। भगवान ने वाणी और शक्ति, दया और करूणा इसीलिए दी है कि उसका उपयोग, अन्याय को रोकने, अधर्म का प्रतिकार करने और दुर्बलों का पक्ष लेने में व्यय करें। इस्लाम और शाकाहार— इसी नाम से मुजफ्फर हुसैन ने एक क्रान्तिकारी किताब लिखी है जिसमें कुरान और हदीस की रोशनी में जीवदया को महिमा मंडित किया गया है। ऐसा लगता है कि जिस प्रकार से भारतीय संस्कृति में पशुबलि ने घुसपैठ की है उसी प्रकार इस्लाम में भी कुर्र्बानी प्रचलित हुई। भारत में महावीर और बुद्ध ने इनका शुद्धीकरण कर दिया परन्तु इस्लाम में ऐसा अब तक नहीं हो पाया है।
पवित्र कुरान कहता हैं— किसी छोटी चिड़िया को भी सताओगी तो उसका जवाब भी तुम्हें देना होगा। जो कोई छोटे जीव पर दया करेगा अल्लाह उसका बदला भी तुम्हें दुनिया में और दुनिया के बाद आखिरत में देने वाला है।
मुजफ्फर हुसैन के अनुसार— हजरत इब्राहीम मध्य एशिया से निकले हुए तीनों धर्म यहूदियत, ईसाइयत और इस्लाम के पितामह हैं। मुस्लिम जिन्हें इब्राहीम कहते हैं,यहूदी और ईसाई उनका उच्चारण अब्राहम करते हैं। हजरते इब्राहीम से कुर्बानी की घटना जुड़ी हुई है। उनके प्रिय पुत्र इस्माइल के स्थान पर एक भेड़ आ गई। कुछ विद्वानों का कहना है कि ईश्वर ने भेड़ को बचा लिया।
पद्मश्री से सम्मानित मुजफ्फर हुसैन कुर्बानी एवं जीवदया का व्यापक विवेचन करते हुये दो शानदार विचार पेश करते हैं—
१. हज यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व इस्लाम का कड़ा आदेश है कि अपने शरीर पर चलते छोटे से कीड़े को भी मत मारो।
२. हजरत इब्राहीम और उनके पुत्र इस्माइल से संबंधित घटना को पवित्र परम्परा के रूप में मुस्लिम अनुसरण करते आये हैं......
लेकिन जब इब्राहीम , यहूदी और इसाईयों के पितामह हैं तो फिर इन दोनों धर्मों के उक्त परम्परा क्यों नहीं हैं ?
बलि विरोध में कुर्बान—
आमतौर पर लोगों को गलत फहमी रहती है कि इस्लाम में क्रूरता भरी है जबकि हिन्दूत्व पशु प्रेमी है, वस्तुत: दोनों दोस्तों के अनेकानेक कट्टर अनुयाइयों ने धर्म के नाम पर पशुओं को कुर्बान किया है। बलि अभी भी जारी है, अगर अच्छी जांच पड़ताल हो तो बलि में, कुर्बानी और कत्लखानों आदि में मरने वाले पशु—पक्षियों के पीछे सब समान रूप से जिम्मेदार है लेकिन सच्चे हिन्दूत्व एवं इस्लाम में जीवमात्र के प्रति स्नेह भरा पड़ा है अतएव आइये हम सब मिलकर बलि के विरोध में समर्पित हो जायें......
कुर्बान हो जाये। हम अगर इस पुण्य कार्य में थोड़े से वक्त की बलि दे दें, थोड़ी सी ही दौलत कुर्बान कर दें तो हजारों लाखों मूक जानवरोें की कराहें रोकी जा सकती है।
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